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सतयुग तक जलती रहेगी मां ज्वाला की यह ज्योति, बादशाह अकबर भी इसे नहीं बुझा सका

हिमाचल प्रदेश स्थित मां ज्वाला देवी का मंदिर ऐसा दिव्य धाम है जहां आस्था के साथ ही हमें ढेरों चमत्कारों के दर्शन होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यही वह स्थान है जहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी। इस मंदिर में श्रद्धालु मां जगदंबा की दिव्य ज्योति के दर्शन करने आते हैं जो सदियों
सतयुग तक जलती रहेगी मां ज्वाला की यह ज्योति, बादशाह अकबर भी इसे नहीं बुझा सका

हिमाचल ​प्रदेश स्थित मां ज्वाला देवी का मंदिर ऐसा दिव्य धाम है जहां आस्था के साथ ही हमें ढेरों चमत्कारों के दर्शन होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यही वह स्थान है जहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी।

इस मंदिर में श्रद्धालु मां जगदंबा की दिव्य ज्योति के दर्शन करने आते हैं जो सदियों से बिना किसी ईंधन के लगातार जल रही है। मां ज्वाला देवी करोड़ों भक्तों की आराध्या हैं। देवी के इस दरबार में असंख्य चमत्कार होते हैं तथा मनोकामनाओं की पूर्ति भक्तों को सदा—सर्वदा के लिए यहां का मुरीद बना देती है।

यहां से कोई नहीं जाता खाली हाथ

देवी के भक्तों की यह प्रबल मान्यता है कि जो भी यहां अरदास करता है, मां उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है। यहां सबसे ज्यादा विस्मयकारी है देवी की वह ज्योति जो कई वर्षों से स्वत: प्रज्वलित हो रही है। उसी के नाम पर इस धाम का नाम ज्वाला देवी है।

वे कथाएं जो आपको बना देंगी मां का भक्त

प्राचीन काल की बात है। यहां राजा भूमिचंद्र का शासन था। उसे शास्त्र ज्ञान से मालूम हुआ कि इस क्षेत्र में देवी सती की जिह्वा गिरी थी। उसने बहुत प्रयत्न किए, परंतु उस स्थान को खोजने में सफलता नहीं मिली।

आखिरकार उसने नगरकोटा—कांगड़ा में देवी को समर्पित एक मंदिर का निर्माण करवाया। इसके कुछ ही दिनों बाद एक ग्वाले ने राजा को बताया कि धौलाधार के पर्वतों में कोई दिव्य ज्योति प्रकट हो रही है। यह बिना किसी घी—तेल के लगातार जल रही है।

राजा तुरंत उस दिव्य ज्योति दर्शन करने चला गया। ग्वाले ने बिल्कुल सही सूचना दी थी। राजा ने देवी की ज्योति को प्रणाम किया और एक मंदिर का निर्माण करवा दिया।

अकबर को मिली मात

कहा जाता है कि शहंशाह अकबर ने एक बार इस ज्योति को बुझाने का प्रयास किया था, परंतु उसे सफलता नहीं मिली। वह खुद को देवी से ज्यादा शक्तिशाली साबित करना चाहता था। जब पानी डालने से भी ज्योति नहीं बुझी तो अकबर ने हार स्वीकार कर ली। इसके पश्चात उसने मां को सवा मण सोने का छत्र भेंट किया था।

गोरखनाथ यहां फिर आएंगे

एक और कथा के अनुसार, द्वापर युग में यहां मां जगदंबा और गुरु गोरखनाथजी महाराज आए थे। जब गोरखनाथजी को भूख लगी तो देवी ने भोजन पकाने के लिए ​अग्नि जलाई। वहीं गोरखनाथजी भिक्षा मांगने चले गए। इसी दौरान कलियुग की शुरुआत हो गई। इसलिए गोरखनाथजी ने निर्णय लिया कि सतयुग आने के बाद ही इस स्थान पर जाएंगे। तब तक देवी की वह ज्योति जलती रहेगी।

 

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