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अपराध मुक्त रहने वाले Gujarat के गांवों को दिया जा रहा खास प्रोत्साहन

गुजरात के हजारों ग्रामीणों के लिए एक अच्छे नागरिक के तौर पर कानून का पालन करना न केवल कानूनी या नैतिक दायित्व बना हुआ है, बल्कि यह उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान कर रहा है। तीर्थगाम-पवांगम नामक एक योजना के हिस्से के रूप में राज्य सरकार ने 16 वर्षों में 1,300 से अधिक अपराध-मुक्त गांवों
अपराध मुक्त रहने वाले Gujarat के गांवों को दिया जा रहा खास प्रोत्साहन

गुजरात के हजारों ग्रामीणों के लिए एक अच्छे नागरिक के तौर पर कानून का पालन करना न केवल कानूनी या नैतिक दायित्व बना हुआ है, बल्कि यह उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान कर रहा है।

तीर्थगाम-पवांगम नामक एक योजना के हिस्से के रूप में राज्य सरकार ने 16 वर्षों में 1,300 से अधिक अपराध-मुक्त गांवों को लगभग 23 करोड़ रुपये उपहार के तौर पर दिए हैं।

2004 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य गांवों की एकता, सामाजिक सद्भाव और सर्वांगीण विकास को बढ़ावा देना है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में अपराध के ग्राफ को कम करने में मदद करता है, क्योंकि अपराध मुक्त गांवों को पुरस्कृत किया जाता है। 2019 तक 1,319 ग्राम पंचायतों को योजना के तहत 22.9 करोड़ रुपये का उपहार दिया गया है।

इस योजना के बारे में बात की जाए तो एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार, तीर्थगाम-पवांगम योजना के तहत यदि कोई भी गांव तीन साल की लगातार अवधि तक अपराध से मुक्त रहत है, तो वह पवांगम श्रेणी में आता है। पांच साल तक अपराध-मुक्त स्थिति रखने वाले गांव तीर्थगाम श्रेणी में आते हैं। तीर्थगाम में दो शब्द शामिल हैं – तीर्थ का अर्थ तीर्थस्थल केंद्र है और गाम का अर्थ गांव है। वहीं पावन शब्द का अर्थ पवित्र है।

अपराध मुक्त स्थिति राज्य के सभी गांवों के पुलिस रिकॉर्ड की जांच करके निर्धारित की जाती है। पवांगम गांवों की ग्राम पंचायतों को 2 लाख रुपये दिए जाते हैं, जबकि तीर्थगाम को 1 लाख रुपये का अतिरिक्त इनाम दिया जाता है। यह चक्र दोहराया जाता है क्योंकि यह एक बार का उपहार नहीं है। 2004 से 976 गांव राज्य में तीर्थगाम का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं, जबकि 343 गांवों को पवांगम का दर्जा मिला है।

गुजरात के 33 जिलों में से 25 जिलों के गांव इस योजना से लाभान्वित हुए हैं। इसमें अहमदाबाद, पोरबंदर, कच्छ, गांधीनगर, पंचमहल, सुरेंद्रनगर, सूरत, साबरकांठा, वलसाड, भरूच, भावनगर, पाटन, सूरत, बनासकांठा, नवसारी, वडोदरा, जामनगर, खेड़ा, अमरेली, तापी-व्यारा, डांग, राजकोट, मोरबी, महेसाणा और जूनागढ़ जिले के गांव शामिल हैं।

योजना के तहत, सड़क दुर्घटनाओं को अपराध नहीं माना जाता है, क्योंकि वे जानबूझकर नहीं किए गए होते हैं।

योजना का घोषित जनादेश सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए है और महेंद्रगढ़, जिसे 2011 में तीर्थगाम का दर्जा दिया गया था, इसकी सफलता का एक प्रमाण है। मोरबी जिले में स्थित इस गांव के 750 निवासियों में से 80 प्रतिशत पाटीदार समुदाय के हैं। लेकिन दिलचस्प तथ्य यह है कि पंचायत नेता (सरपंच) एक मुस्लिम महिला हैं, जिनका नाम मुमताज मुतकभाई भोरिया है।

भोरिया ने कहा, “यह फैक्ट कि मैं खुद एक पाटीदार गांव की सरपंच हूं, जो यह बताता है कि यहां पर लोग एक-दूसरे से कितने करीब से बंधे हुए हैं। मैं गांव की हर विकासात्मक गतिविधि में सक्रिय रूप से शामिल हूं और यही हम सबके लिए मायने रखता है। लोग खुश हैं, मैं खुश हूं। तीर्थगाम और पवांगम जैसी योजनाएं गांवों में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से एक उल्लेखनीय कदम है।”

उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव, समझ और विकास की मानसिकता के कारण, यह ग्राम पंचायत छठे कार्यकाल के लिए समरस पंचायत भी रही है। समरस उस ग्राम योजना को संदर्भित करती है, जहां नेताओं और पंचायतों के सदस्यों को आम सहमति से चुना जाता है न कि चुनाव के माध्यम से। राज्य सरकार समरस पंचायतों को अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करती है।

यह एक सकारात्मक योजना है, लेकिन इसे अब विस्तार करते हुए अन्य और भी गांवों तक पहुंचाना है ताकि राज्य भर में इसका व्यापक असर हो सके। राज्य पंचायत विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ए. के. राकेश को उम्मीद है कि सरकार इस योजना को आगे बढ़ाने और आने वाले वर्षों में अभूतपूर्व परिणाम देने में सक्षम होगी।

उन्होंने कहा कि यह योजना अद्वितीय है और यह इस बात का प्रतिबिंब है कि राज्य सरकार लोगों के कल्याण के लिए कैसे प्रतिबद्ध है। यह विभिन्न गांवों से कई सकारात्मक कहानियां लेकर आई है। राकेश ने कहा कि भविष्य में योजना से अधिक गांवों को लाभ मिलेगा।

news source ians

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