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मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष होगा 2023, ज्वार-बाजरा की बढ़ेगी मांग जाने नया क्या है

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रस्ताव के समर्थन में 70 से अधिक देश आए और आम सहमति से इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। यह बातें शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने कही।पीएलआई योजना को लेकर बजट प्रावधानों पर आयोजित सम्मेलन को
मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष होगा 2023, ज्वार-बाजरा की बढ़ेगी मांग जाने नया क्या है

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रस्ताव के समर्थन में 70 से अधिक देश आए और आम सहमति से इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। यह बातें शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने कही।पीएलआई योजना को लेकर बजट प्रावधानों पर आयोजित सम्मेलन को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ”यह हमारे किसानों के लिए एक बड़ा अवसर है। उन्होंने उद्योगों से मोटे अनाजों की पौष्टिक संभावनाओं और लोगों को बीमार होने से बचाने को लेकर 2023 में विश्वव्यापी अभियान शुरू करने को कहा। वेबिनार का आयोजन उद्योग और अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) और नीति आयोग ने किया।

ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों की मांग बढ़ेगी मोदी ने कहा कि इस घोषणा के बाद घरेलू और विश्व बाजार में ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों की मांग में तेजी से वृद्धि होगी और इसका भारतीय किसानों को अच्छा लाभ होगा। उन्होंने कृषि और खाद्य प्रसंसकरण उद्योग से इस अवसर का पूरा लाभ उठाने का आग्रह किया।एफएओ में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रहे प्रो. रामचेत चौधरी ने टीवी-9 डिजिटज से बातचीत में कहा, “हरित क्रांति के बाद आई खाद्य संपन्नता ने भारतीयों के खानपान से मोटे अनाजों को दूर कर दिया. गेहूं और चावल में ज्यादा स्वाद मिला और यह पौष्टिक अनाजों को रिप्लेस करता चला गया. नब्बे के दशक के बाद इसमें ज्यादा तेजी आई. वैज्ञानिक समुदाय ने भी इस पर काम नहीं किया. इसलिए किसानों ने ऐसी फसलों को उगाना बंद कर दिया. लोगों ने इसे गरीबों का खाद्यान्न कहकर उपेक्षित कर दिया. हालांकि, आदिवासी क्षेत्रों में इसकी पैदावार होती रही है.”

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