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क्या वाकई इंसान अंतरिक्ष में जिंदा रह पायेगा

जयपुर। विज्ञान आसमान की सैर कर अब इंसान को अंतरिक्ष की सैर करवायेगा। और सैर ही नहीं इंसान की बस्ति भी बसायेगा। जी हां वैज्ञानीक जो सालों खोद कर रहे है। उनकी खोज खत्म तो नहीं हुई लेकीन पृथ्वी से इंसानों का भार कम करने के लिए अंतरीक्ष में इंसानों की एक बस्ति बसायेगा। 500
क्या वाकई इंसान अंतरिक्ष में जिंदा रह पायेगा

जयपुर। विज्ञान आसमान की सैर कर अब इंसान को अंतरिक्ष की सैर करवायेगा। और सैर ही नहीं इंसान की बस्ति भी बसायेगा। जी हां वैज्ञानीक जो सालों खोद कर रहे है। उनकी खोज खत्म तो नहीं हुई लेकीन पृथ्वी से इंसानों का भार कम करने के लिए अंतरीक्ष में इंसानों की एक बस्ति बसायेगा। 500 घंटे अंतरिक्ष में बिता चुकी 66 वर्षीय चिआकी मुकाई स्पेस कॉलोनी बनाने का एक सपना पुरा कर रही है।क्या वाकई इंसान अंतरिक्ष में जिंदा रह पायेगा

वह इस नए प्रोजेक्ट में अपनी जी-जान से लगी हुई हैं। मुकाई कहती हैं, “हमारा काम संभावनाओं को तलाशना है और मुझे लगता है कि हम सब के लिए अब धरती छोटी पड़ने लगी है।” मुकाई का दावा है कि साल 2030 तक चंद्रमा पर कॉलोनी स्थापित की जा सकेगी। उनकी टीम ने अंतरिक्ष में भोजन पैदा करने का खास तरीका निकाला है।क्या वाकई इंसान अंतरिक्ष में जिंदा रह पायेगा

इस प्रक्रिया में एक खारे सॉल्यूशन में हाई वोल्टेज बिजली सप्लाई कर तरल प्लाज्मा तैयार किया जाएगा जिसका इस्तेमाल भोजन उत्पादन में किया जाएगा। नई तकनीक से आलू भी जल्द पैदा हो सकेंगे। वैज्ञानिकों की दूसरी टीम स्पेस के कचरे के प्रबंधन को लेकर काम काम कर रही है। मुकाई बताती है कि वे कई ऐसी तकनीकों पर भी काम कर रहीं हैं।क्या वाकई इंसान अंतरिक्ष में जिंदा रह पायेगा

जिनके ऐपलिकेशन धरती पर भी संभव है। उन्होंने कहा कि हम चंद्रमा के लिए ही तकनीक नहीं बना रहे हैं लेकिन हम ऐसे मसलों पर काम कर रहे हैं जिन्हें कॉलोनी बसाने से पहले धरती पर सुलझाया जा सकता है। साथ ही भविष्य में ये धरती के लिए भी उपयोगी साबित हो सकते हैं।

 

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