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क्या फिल्मों की आड़ में संगीत ट्रेंड भूल चुका हिंदी सिनेमा

हिंदी सिनेमा में हर एक चीज का एक दौर होता है ऐसे में हम बात कर रहे है संगीत के दौर के बारे में।जहां ये देखना काफी सरल है कि अब इस जमाने में सूफी और गजलें सुनने का हर कोई इंतजार कर रहे है।सिनेमा से ये संगीत फॉर्म्स इस तरह जा चुकी है कि अब इनके वापसी आने के बारे में भी कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।
क्या फिल्मों की आड़ में संगीत ट्रेंड भूल चुका हिंदी सिनेमा

हिंदी सिनेमा में जहां कहानियों और किस्सो से हर कोई उत्साहित रहता है उसी का एक बड़ा भाग है संगीत।जी हां बॉलीवुड के गानों को देशभर में पसंद किया जाता है रोमांटिक,ड्रामेटिक,हिंदुस्तानी,फोक, फिल्मी,पॉप म्यूजिक जहां आज बॉलीवुड की पहचान है उसी में सूफी संगीत, गजल, शास्त्रीय संगीत,कव्वाली अब लुप्त होती जा रही है जी हां हिंदी सिनेमा में जहां हर दूसरी फिल्म में इस तरह के संगीत को तरजीह दी जाती थी अब ये समय के साथ खत्म होते जा रहे है आखिरकार ऐसा क्यों।हालांकि ऐसा क्यों हो रहा है इस पर तो कोई जबाव नहीं है लेकिन इससे दर्शकों को काफी आहात हो रहा है।आज के दौर में पॉप म्यूजिक, और रीक्रेट म्यूजिक को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है इसके लिए सवाल भी उठे थे कि क्या बॉलीवुड के पास अब गाने बनाने का टैलेंट खत्म हो चुका है जो उन्हे पुराने गानो का सहारा लेकर ही उसे रीक्रेट करना पड़ रहा है।क्या फिल्मों की आड़ में संगीत ट्रेंड भूल चुका हिंदी सिनेमाक्या फिल्मों की आड़ में संगीत ट्रेंड भूल चुका हिंदी सिनेमा

बॉलीवुड के मशहूर गायक कलाकार लता मंगेशकर, आशा भोसले, ए आर रहमान, शान, सोनू निगम, अनुराधा पेडवाल, कुमार सानू, पंकज उदास के जमाने में भले ही आपने हर एक म्यूजिक फ़ॉर्म का मजा लिया हो लेकिन अब ये खत्म होता जा रहा है।भले ही कैलाश खेर, अदनान सामी, हरदीप कौर, अबिदा परवीन, वाडली ब्रदर्स आज म्यूजिक के इस प्लेटफॉर्म पर जोरों शोरो से कार्यरत हो लेकिन उनके भी एक जमाने में दिये गये सूफी गायक अब खत्म हो चुके है।जी हां फिल्मो में उनके हिसाब से गाने के अलावा अब अपना टैलेंट वो कही ना कही भूल चुके है।क्या फिल्मों की आड़ में संगीत ट्रेंड भूल चुका हिंदी सिनेमा

आज फिल्में में गाने को उतनी तरजीह नहीं दी जाती है।भले ही फिर हमारे पास हर फॉर्म में गाने वाली नेहा कक्कड़ हो या फिर अरिजीत सिंह, श्रेया घोषाल जैसे प्रसिद्द कलाकार।ये वही ट्रेंड फॉलो कर रहे है जो कि खत्म हो चुका है।पहले जहां गायिकी में फिल्मों के हर एक सितारों को उस हिसाब से अपनी बॉडी को पकफेक्ट करना होता था तो वही अब ये गाने एक सपनो की तरह फिल्मो में सामने आते है।ऐसे में यदि किसी कलाकार को अपनी मन पसंद का गाना लाना हो तो वो उसके लिए अलबम का उपयोग करता है।ये वाकई में सिनेमा का बदलता दौर है।ऐसे में अब देखना ये है कि क्या वापस से सूफी गानो का ये संगम सिनेमा में शुरु होगा क्या वाकई में जो ट्रेंड्स बॉलीवुड फिल्ममेकर्स भूल चुके है वो फिल्मों के साथ म्यूजिक की दुनिया में भी काम करेंगे।क्या फिल्मों की आड़ में संगीत ट्रेंड भूल चुका हिंदी सिनेमा

हिंदी सिनेमा में हर एक चीज का एक दौर होता है ऐसे में हम बात कर रहे है संगीत के दौर के बारे में।जहां ये देखना काफी सरल है कि अब इस जमाने में सूफी और गजलें सुनने का हर कोई इंतजार कर रहे है।सिनेमा से ये संगीत फॉर्म्स इस तरह जा चुकी है कि अब इनके वापसी आने के बारे में भी कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। क्या फिल्मों की आड़ में संगीत ट्रेंड भूल चुका हिंदी सिनेमा

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