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कब से शुरु हुई मौली बांधने की प्रथा और क्या है इसका धार्मिक महत्व, जानिए

हिंदू धर्म में हर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा पाठ मांगलिक कार्य, देवी देवताओं की पूजा आदि शुभ कार्यों में कलावे का उपयोग किया जाता हैं पूजा के बाद उसे हाथ की कलाई पर बांधा जाता हैं हाथ पर लाल पीले रंग का धागा यानी मौली बांधने की परंपरा बहुत पुरानी हैं तो आज हम आपको मौली
कब से शुरु हुई मौली बांधने की प्रथा और क्या है इसका धार्मिक महत्व, जानिए

हिंदू धर्म में हर धार्मिक अनुष्ठान, पूजा पाठ मांगलिक कार्य, देवी देवताओं की पूजा आदि शुभ कार्यों में कलावे का उपयोग किया जाता हैं पूजा के बाद उसे हाथ की कलाई पर बांधा जाता हैं हाथ पर लाल पीले रंग का धागा यानी मौली बांधने की परंपरा बहुत पुरानी हैं तो आज हम आपको मौली के धार्मिक महत्व और इसके बारे में जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं। कब से शुरु हुई मौली बांधने की प्रथा और क्या है इसका धार्मिक महत्व, जानिएआपको बता दें कि मौली का शाब्दिक अर्थ होता हैं सबसे ऊपर इसलिए मौली का तात्पर्य सिर से भी माना जाता हैं कहा जाता हैं कि भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा विराजमान हैं इसलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता हैं मौली को कच्चे धागे से बनाया जाता हैं इसमें तीन रंगों का उपयोग किया जाता हैं कब से शुरु हुई मौली बांधने की प्रथा और क्या है इसका धार्मिक महत्व, जानिएलाल, पीला और हरा ये तीनों रंग बहुत ही शुभ माने जाते हैं इन तीनों रंगों का अर्थ त्रिदेव भी निकाला जाता हैं कहा जाता हैं कि कलावा बांधने से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवियों लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा बनी रहती हैं लोग अलग अलग इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी मौली का प्रयोग करते हैं किसी काम की शुरुवात के संकल्प के लिए भी मौली बांधा जाता हैं यह पवित्र धागा होता हैं।कब से शुरु हुई मौली बांधने की प्रथा और क्या है इसका धार्मिक महत्व, जानिए

वेदों में भी बताया गया है कि जब इंद्र वृत्रासुर से युद्ध के लिए जा रहे थे तब इंद्राणी ने उनकी रक्षा के लिए दाहिनी भुजा पर रक्षासूत्र बांधा था। जिसके बाद वृत्रासुर को मारकर इंद्र विजयी हो गए। कहा जाता हैं कि तभी से यह परंपरा शुरू हुई। मान्यताओं के मुताबिक कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने से जीवन में आ रही परेशानियों से मुक्ति मिल जाती हैं। कब से शुरु हुई मौली बांधने की प्रथा और क्या है इसका धार्मिक महत्व, जानिए

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