मेन्स्ट्रुअल कप को ले कर हैं कई लोगों के मन में कुछ अजीब सी भ्रांतियाँ
जयपुर । हर महिला को हर महीने सेनेत्री नेपकिंस की जरूरत पड़ती है । मासिक धर्म के दौरान उनको अपनी हाइजीन के लिए इसका इस्तेमाल करना ही पड़ता है । पर अक्सर इसका इस्तेमाल करनी के साथ ही उनके साथ और भी परेशानियाँ होने लगती है । रेशेज , जलन होना , आर एलर्जी या वजाइनल इन्फेक्शन अक्सर हो ही जाया करता है ।
हाल ही मे हुए कुछ शोध में यह बात भी सामने आई है की यदि सेनेत्री नेपकिंस को हर 6 घंटे में ना बदला जाये तो यह कैंसर का कारण भी बन सकता है । जिससे की कई महिलाएं आज जुंझ भी रही है । आज हम आपको इस परेशानी से बचने के लिए बहुत ही खास बात और कुछ सच के बारे में बताने जा रहे हैं । आइये जानते हैं इस बारे में ।
आज हम बात कर रहे हैं मेन्स्ट्रुअल कप के इस्तेमाल के बारे में आइये जानते हैं इसे जुड़े कुछ सच और कुछ मिथक :-
क्या है मेन्स्ट्रुअल कप?
ये कप्स मेडिकल-ग्रेड सिलिकॉन से बने बेल-शेप्ड कप होते हैं। यह बहुत ज्यादा फ्लेक्सिबल होता है, जिसे आराम से वजाइना में इन्सर्ट किया जा सकता है। यह सॉफ्ट कप गर्भाशय से निकलने वाला सारा ब्लड जमा करता जाता है।
मिथक :- इसको बार बार बदलना पड़ता है ।
सच :- मेन्स्ट्रुअल कप को एक साल में बदलना पड़ता है , ये सही नहीं है। अच्छी किस्म के सिलिकॉन से बने कप अगर सही से इस्तेमाल किये जाएं तो लगभग 10 साल उपयोगी रहते हैं।
मिथक :- यह एलर्जेटिक होता है ।
सच :- आज कल के आधुनिक कप मेडिकल ग्रेड सिलिकॉन से बने होते हैं और जिनको लैटेक्स या प्लास्टिक से ऐलर्जी है उनके लिए भी पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं।
मिथक :- इसको कर सकते हैं लंबे समय तक इस्तेमाल ।
सच :- इन मेन्स्ट्रुअल कप्स को 12 घंटे लगातार नहीं लगाया जाना चाहिए, फिर चाहे ब्लड फ्लो की मात्रा कम ही हो या ज्यादा हो । इसे हर 4 से 8 घंटे में निकालकर धोकर और फिर से लगाना चाहिए।