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झूठ बोलते वक्त हमारे दिमाग में आखिर चलता क्या है? आज जान ही लीजिए

जयपुर। कहा जाता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है, मतलब यही है कि झूठ बोलने वाले गलत काम करने वाले के मन में चोर छुपा हुआ रहता है, जो उसे कोई न कोई गलती करने पर मजबूर कर देता है। इसी गलती को पकड़कर इतने सालों से पुलिस, जासूस, सीआईडी वाले अपना
झूठ बोलते वक्त हमारे दिमाग में आखिर चलता क्या है? आज जान ही लीजिए

जयपुर। कहा जाता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है, मतलब यही है कि झूठ बोलने वाले गलत काम करने वाले के मन में चोर छुपा हुआ रहता है, जो उसे कोई न कोई गलती करने पर मजबूर कर देता है। इसी गलती को पकड़कर इतने सालों से पुलिस, जासूस, सीआईडी वाले अपना काम निकाल रहे हैं। दरअसल जब भी हम किसी भी बात को छुपाने की कोशिश करते हैं तो हमारे दिमाग में एक खास किस्म का केमिकल लोचा होने लगता है।

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दरअसल किसी भी तथ्य को छुपाने के लिये झूठ का सहारा लेना ही पड़ता है। मगर इंसानी दिमाग खुद को धोखा नहीं दे सकता है। बस इसी वजह से झूठ बोलने पर दिमाग में एक खास हिस्से में अलग तरह के संकेत उत्पन्न होने लगते हैं। वैसे इंसानी दिमाग इस कायानात की अब तक की सबसे अनोखी चीज है। इस जटिल उत्तक की पहेली को ना कोई सुलझा सका है और ना ही किसी मशीन में इतनी काबिलियत है कि वह विधाता के बनाए इस सुपरकंप्यूटर से आगे निकल पाए।झूठ बोलते वक्त हमारे दिमाग में आखिर चलता क्या है? आज जान ही लीजिए

जिस तरह से कम्प्यूटर की हार्ड ड्राइव काम करती है, ठीक उसी तरह हमारा दिमाग भी जरूरी सूचनाओं को अपने अंदर स्टोर करके रखता है। लेकिन जब दिमाग को लगने लगे कि कोई भी चीज सच्ची नहीं बल्कि झूठी है तो वह उसे ज्यादा सुरक्षित रखने के लिए एक गुप्त स्टोरेज इलाके में स्टोर कर देता है। मेडिकल साइंस की जुबान में इसे हिप्पोकैम्पस कहते हैं। जी हां, यही वो हिस्सा है जो आपके राज़ महफूज रखता है।

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मगर अनुसंधान से यह साबित हो चुका है कि झूठी जानकारी इस इलाके में भी ज्यादा देर तक नहीं रुकती है। जब भी हम किसी झूठी बात को याद करते हैं, तब हमारा दिमाग उसे दोबारा हिप्पोकैम्पस में जाकर स्टोर कर देता है। कहने का मतलब यही है कि हिप्पोकैंपस ही फरेब की जन्मस्थली है। इस झूठे तथ्य को यहां से बाद में सेरेब्रल कोर्टेक्स में पहुंचा दिया जाता है। इस जगह सच और झूठ में अंतर करके दो तरह की सूचना की फाइलें बनाई जाती हैं। इस पैचीदा प्रक्रिया को सोर्स इमनेज़िया कहा जाता है। दिमाग की इसी खूबी के कारण लोग किसी भी बात को सच या झूठ ठहरा पाते हैं।झूठ बोलते वक्त हमारे दिमाग में आखिर चलता क्या है? आज जान ही लीजिए

हालांकि शोध के नतीजे बताते हैं कि वक्त बीतने के साथ धीरे धीरो वह झूठ भी दिमाग से मिटता चला जाता है। इस वजह से काफी समय बाद अगर उसी फरेब की जरूरत पड़ जाए तो दिमाग को फिर से वही झूठ पैदा करने में बहुत मुश्किल होती है। इस तरह दिमाग में केवल वही झूठ मौजूद रहता है, जिसे हम रोजमर्रा की लाइफ में काम में लेते हैं। हालांकि यह प्रक्रिया दिमाग के विकास पर भी काफी हद तक निर्भर करती है।

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