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क्या है जाति समीकरण का खेल और कैसे पार्टियां एक-दूसरे के पारंपरिक वोट बैंक में लगा रही है सेंध?

राजनीतिक पार्टियों के कुछ जातियां या धर्म पारंपरिक वोटर्स माने जाते हैं जिसको तोड़ना काफी मुश्किल माना जाता है और उस विशेष जाति या धर्म के लोगों का एक बड़ा हिस्सा किसी खास राजनीतिक दल को ही अपना मत देता है और यह पारंपरिक वोट बैंक किसी भी चुनाव में एक बहुत अहम पहलू माना
क्या है जाति समीकरण का खेल और कैसे पार्टियां एक-दूसरे के पारंपरिक वोट बैंक में लगा रही है सेंध?

राजनीतिक पार्टियों के कुछ जातियां या धर्म पारंपरिक वोटर्स माने जाते हैं जिसको तोड़ना काफी मुश्किल माना जाता है और उस विशेष जाति या धर्म के लोगों का एक बड़ा हिस्सा किसी खास राजनीतिक दल को ही अपना मत देता है और यह पारंपरिक वोट बैंक किसी भी चुनाव में एक बहुत अहम पहलू माना जाता है। राष्ट्रीय जनता दल का पारंपरिक वोट बैंक यादवों और मुस्लिमो को माना जाता है। लेकिन इस बार तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की परंपरागत वोट बैंक ईबीसी (अति पिछड़ी जातियों) में सेंधमारी कर नए सामाजिक समीकरण गढ़ने की फिराक में लगे हैं, वहीं नीतीश राजद के माय समीकरण में सेंधमारी की कोशिशों में जुटे हैं। तेजस्वी ने नए सियासी समीकरण को साधते हुए भाजपा के भी वोट बैंक में भी सेंधमारी की कोशिश की है। तेजस्वी की कोशिश है कि वह माय के अलावा एक नया वोट बैंक भी तैयार करें और उसे अपने पाले में करें।
नए जाति समीकरण तैयार करने के लिए तेजस्वी यादव ने इस बार अपने प्रत्याशियों में भी कई फेरबदल करें हैं। पहली बार राजद ने कुल 144 सीटों में से 24 सीटों पर अति पिछड़ी जाति (ईबीसी) और एक दर्जन सीटों पर उच्च जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है। पिछले चुनावों में राजद ने ईबीसी को चार और उच्च जाति के दो उम्मीदवारों को ही टिकट दिया था। राजद ने 30 महिलाओं को भी टिकट दिया है। इसके अलावा राजद ने अपने परंपरागत वोट बैंक के दो वर्गों यादवों और मुस्लिमों को क्रमश: 58 और 17 टिकट दिए हैं।
दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने भी अपनी जाति समीकरण में फेरबदल करने के लिए इस बार 19 ईबीसी, 15 कुशवाहा और 12 कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट दिया है। नीतीश कुमार ने 17 अनुसूचित जाति के लोगों को भी चुनावी टिकट दिया है. जेडीयू ने 11 मुस्लिमों और 18 यादवों को टिकट देकर माय समीकरण में घुसपैठ की कोशिश की है। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के लिए 2005 और 2010 के चुनावों से ही ईबीसी और महादलित परंपरागत वोट बैंक रहे हैं।
बिहार में 26% ओबीसी और 26% एबीसी वोट बैंक है जिसमें से ओबीसी का एक बहुत बड़ा हिस्सा लगभग 14% यादव वोट है जो कि पारंपरिक तौर पर राजद का वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा ओबीसी में 8 फीसदी कुशवाहा और 4 फीसदी कुर्मी वोट बैंक है। इन दोनों पर नीतीश कुमार का प्रभाव है. वैसे उपेंद्र कुशवाहा भी आठ फीसदी कुशवाहा समाज पर प्रभाव का दावा करते हैं। इन सबसे अलग मुस्लिम समाज का वोट तकरीबन 16% है जोकि एक बार फिर राजद का पारंपरिक वोट बैंक समझा जाता है। लेकिन इस बार नीतीश कुमार भी माय वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं और पहले भी माय समीकरण का बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार को समर्थन दे चुका है।

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