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विजय दशमी: लंकाधिपति​ रावण का ये आविष्कार आज भी है लोकप्रिय…

विजय दशमी के दिन देश की जनता रावण को बुराई का प्रतीक मानकर उसका दहन करती है। लेकिन इस बात को लोग भूल जाते हैं कि वो एक वेदपाठी, रावण संहिता का लेखक, परम शिवभक्त, विद्वान ब्राहृमण तथा त्रिलोक विजयी भी था। और सबसे बड़ी बात कि वो एक संगीतज्ञ भी था। रावण ने अपनी
विजय दशमी: लंकाधिपति​ रावण का ये आविष्कार आज भी है लोकप्रिय…

विजय दशमी के दिन देश की जनता रावण को बुराई का प्रतीक मानकर उसका दहन करती है। लेकिन इस बात को लोग भूल जाते हैं कि वो एक वेदपाठी, रावण संहिता का लेखक, परम शिवभक्त, विद्वान ब्राहृमण तथा त्रिलोक विजयी भी था। और सबसे बड़ी बात कि वो एक संगीतज्ञ भी था।

रावण ने अपनी संगीत अपनी रूचि के कारण एक वाद्ययंत्र का अविष्कार भी किया था,जो आज भी लोगों में काफी लोकप्रिय है। इस वाद्ययंत्र की मधुर ध्वनि को लोग दिल से सुनना पसंद करते हैं। जीं हां, इस वाद्ययंत्र का नाम है रावण हत्था। आज की तारीख रावण हत्था लोगों की आजीविका का साधन बना हुआ है। रावण हत्था राजस्थान के प्रमुख वाद्ययंत्रों में शुमार किया जाता है।

आपको जानकारी के लिए बतादें कि राजस्थानी लोग फड़ बांचते वक्त रावण हत्थे को बजाते हैं। इतिहास के अनुसार करीब 3000 ईसा पूर्व दशानन ने रावण हत्थे का अविष्कार किया था। इसीलिए इसे रावण हत्था कहा जाता है। कई लोग इसे रावण हस्त वीणा भी कहते हैं। हालांकि आज की तारीख में भी रावण हत्था थोड़े बहुत बदलावों के साथ अपने मूल स्वरूप में कायम है।

विजय दशमी: लंकाधिपति​ रावण का ये आविष्कार आज भी है लोकप्रिय…
ravan hathha

रावण हत्थे में नारियल की खाली कटोरी पर वीणा की तरह से तार कसे हुए होते हैं। इसमें कई खूटियां भी लगी होती हैं जिससे इन तारों को कसकर सुर नियंत्रित किया जाता है। जब तारों पर कमान चलाई जाती है तो रावण हत्थे से मधुर सुर निकलते हैं।

रावण हत्था बजाने के लिए एक हाथ से तारों को नियंत्रित किया जाता है तो दूसरे हाथ से कमान चलाई जाती है।
राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में रावण हत्था काफी लोकप्रिय वाद्ययंत्र है। विदेशी सैलानी रावण हत्थे को बड़े चाव से सुनते हैं और इसके सुर से आकर्षित भी होते हैं।

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