वास्तुटिप्स: मृत्युभोज ग्रहण करने से नष्ट होती है हमारी ऊर्जा
वास्तुशास्त्र एक विज्ञान हैं,जो दिशा और आपके आस—पास में उपस्थित वस्तुओं से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा के प्रभाव को बताता हैं। वास्तु विज्ञान के मुताबिक ऊर्जा अगर अनुकूल होती हैं,तो आपकी प्रगति उन्नति अवश्य ही होती हैं, लेकिन प्रतिकूल ऊर्जा होने के कारण आपके जीवन में परेशानी आती रहती हैं,और यह हमारे जीवन के हर क्षेत्र पर लागू होती रहती हैं।
वही महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार ही मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा होजाती हैं। सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनै: मतलब कि जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न यानी खुश होता हैं तो खाने वाले का मन भी प्रसन्न और खुश रहता हैं। तभी जाकर भोजन करना चाहिए। मगर जब खिलाने वाले व्यक्ति और खाने वाले व्यक्ति के दिल में दर्द हो वेदना हो और दुख भरा हो तो ऐसी स्थिति में कभी भी भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए यह उचित नहीं होता हैं,क्योकि दुखी होकर किसी को कैसे भोजन कराने का क्या मतलब होता हैं।
आपको बता दें कि हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से 16 संस्कार बनाए गए हैं, जिसमें से अन्तिम यानि की 16वां संस्कार अन्त्येष्टि का माना जाता हैं। वही इस प्रकार सत्रहवां संस्कार मृत्युभोज कहां से। इसीलिए महर्षि दयानन्द सरस्वती पं0श्री राम शर्मा ,स्वामी विवेकानन्द जैसे महान महारिषियों ने मृत्युभोज का जोरदार ढ़ग से विरोध किया हैं।
जानवरों से भी सीखें,जिसका साथी बिछुड़ जाने पर वह उस दिन चारा भी नहीं करता हैं,और वही आदमी की मृत्यु पर मृत्युभोज खाकर शोक मनाने का ढोंग रचता हैं। मृत्युभोज समाज में फैली कुरीति हैं और समाज के लिए एक अभिशाप भी हैं।