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ये है इस संसार में इकलौता नियम जो भगवान को भी प्रसन्न होने के लिए कर देता है विवश,जानिए

जयपुर। आज इस लेख में हम आपको एक पौराणिक कहानी बता रहें हैं, यह बात उन दिनों की है जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राज्य किया करते थे। महाराज युधिष्ठिर राजा के रुप में प्रजा का हमेशा ध्यान रखते थे इसके साथ ही वे दान पुण्य का काम भी किया करते थे। उनके इस गुण
ये है इस संसार में इकलौता नियम जो भगवान को भी प्रसन्न होने के लिए कर देता है विवश,जानिए

जयपुर। आज इस लेख में हम आपको एक पौराणिक कहानी बता रहें हैं, यह बात उन दिनों की है जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राज्य किया करते थे। महाराज युधिष्ठिर राजा के रुप में प्रजा का हमेशा ध्यान रखते थे इसके साथ ही वे दान पुण्य का काम भी किया करते थे। उनके इस गुण के कारण उनकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैलने लगी जिसके कारण उनके भाईयों को इस पर अभिमान होने लगा।

ये है इस संसार में इकलौता नियम जो भगवान को भी प्रसन्न होने के लिए कर देता है विवश,जानिए

ऐसे में कहा जाता है कि भगवान अपने भक्तों पर अभिमान को बिल्कुल पसंद नहीं करते। ऐसा ही पांडवों के साथ हुए। एक बार जब श्री कृष्ण इंद्रप्रस्थ आएं तो भीम व अर्जुन ने युधिष्ठिर की प्रशंसा करना शुरू किया  कि वे कितने बड़े दानी हैं। उस समय कृष्ण ने उन्हें बीच में ही टोक दिया और कहा कि हमने कर्ण जैसा दानवीर और नहीं सुना। इस पर पांडवों को भगवान कृष्ण की यह बात पसंद नहीं आई। तो भीम ने पूछ ही लिया, कैसे? तब कृष्ण ने कहा कि समय आने पर बताऊंगा।

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इसके बाद कुछ ही दिनों में सावन का महीना आ गया जिस पर वर्षा शुरु हो गई। उस समय एक याचक युधिष्ठिर के पास आया और बोला, महाराज! मैं एक ब्राह्मण हूं मेरा व्रत है कि बिना हवन किए कुछ भी नहीं खाता-पीता। लेकिन कई दिनों से मेरे पास यज्ञ करने के लिए चंदन की लकड़ी नहीं है। आप मेरी सहायता करें नहीं तो हवन पूरा नहीं होगा जिसके कारण मैं भूखा-प्यासा मर जाऊंगा।

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युधिष्ठिर ने उस समय कोषागार के कर्मचारी को बुला कर कोष से चंदन की लकड़ी देने का आदेश दिया। लेकिन संयोग से कोषागार में भी सूखी लकड़ी नहीं थी। उस समय महाराज ने भीम व अर्जुन को चंदन की लकड़ी का प्रबंध करने का आदेश दिया। बर्षा के कारण भीम व अर्जुन की दौड़-धूप भी व्यर्थ गई कही भी सूखी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो पाई।

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उस समय ब्राह्मण को हताश देख कृष्ण ने कहा कि मेरे अनुमान से आपको एक जगह पर लकड़ी मिल सकती है। इस पर ब्राह्मण के चेहरे में खुशी की लहर दौड़ पडी। भगवान ने अर्जुन व भीम को भी इशारा कर वेष बदलकर कर ब्राह्मण के संग चलने के लिए कहा। जिसके बाद कृष्ण सबको लेकर कर्ण के महल में गए। याचक ब्राह्मण ने जाकर चंदन की लकड़ी की मांग दोहराई। तो कर्ण ने भी अपने भंडार में चंदन की सूखी लकडी ना होने के बारे में कहा जिसको सुनकर ब्राह्मण निराश हो गया। उस समय अर्जुन और भीम भगवान को ताकने लगे। लेकिन कर्ण ने उस समय अपने महल के खिड़की-दरवाजों में लगी चंदन की लकड़ी काट-काट ब्राह्मण को दे दी।

ब्राह्मण  लकड़ी लेकर कर्ण को आशीर्वाद देता हुआ लौट गया। उसके बाद पांडवों को भगवान कृष्ण ने कहा साधारण अवस्था में दान देना कोई विशेषता नहीं है लेकिन असाधारण परिस्थिति किसी को दान देना किसी के लिए अपना सर्वस्व त्याग कर देना ही दान है।

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