भगवान शिव का जीवित रुप होते है यह इंसान, प्रसन्न होने पर रंक को भी बना देते हैं राजा
जयपुर। शास्त्रों में भगवान शिव की साधना दो तरीकों से मानी जाती है। भगवान शिव की एक साधना सात्विक रुप में की जाती है तो दूसरी साधना तामसिक रुप में की जाती है। हालांकि दोनों साधना का संबंध शिव को प्रसन्न करने से है। लेकिन साधना के तरीके व विधि अलग-अलग होती है।
भगवान शिव की सात्विक रुप से पूजा करने के अंतर्गत भगवान शिव की पूजा में फल, फूल, जल आदि चढाया जाता है, तो भगवान शिव की तामसिक पूजा के अंतर्गत तंत्र-मंत्र के दवारा शिव को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। शास्त्रों में माना जाता है कि भगवान शिव तंत्र शास्त्र के देवता थे, शिव को ही अघोरपंथ के जन्मदाता माना जाता है। अघोरपंथ भारत के प्राचीन धर्म शिव साधना से संबंध रखती है, अघोरियों को पृथ्वी पर शिव जी का जीवित रूप माना जाता है।
शास्त्रों में भगवान शिव के 5 रूप माने गये हैं जिनमें से एक रुप है अघोर रूप। लोगो के मन में अघोरियों के बारे में जानने की हमेशा ही जीज्ञासा रहती है। लेकिन अघोरियों का जीवन जीतना कठिन होता है, उतना ही रहस्यमय भी माना जाता है।
अघोरियों की साधना विधि रहस्यमय मानी जाती है, अघोरियों की दुनिया अलग ही होती है। अघोरी जिस पर प्रसन्न हो जाते है उसे रंक से राजा बना देते हैं, लेकिन जिस पर अघोरी नाराज़ हो गये उसे राजा से रंक बनाने में देरी नहीं करते।
अघोरियों के मन में किसी के लिए भी कोई भेदभाव नहीं होता है। वे सभी लोगो के लिए एक समान भावना रखते हैं। अघोरी अपने मन के मालिक होते हैं। आमतौर पर अघोरी किसी से खुलकर बात नहीं करते हैं। ये अपने आप में मगन रहने वाले तांत्रिक होते हैं। समाज से दूर रहना इन्हें पसंद होता हैं।