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सफ़ेद दाग की बिमारी होती है असल में एक प्रकार का डिसऑर्डर

सफ़ेद दाग की समस्या असल में एक प्रकार का डिसओडर है । यह एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। इसमें स्किन का रंग बनाने वाले सेल्स यानी खत्म होने लगते हैं या काम करना बंद कर देते हैं, जिससे शरीर पर जगह-जगह सफेद-से धब्बे बन जाते हैं।
सफ़ेद दाग की बिमारी  होती है असल में एक प्रकार का डिसऑर्डर

जयपुर।  सफ़ेद दाग जिसके बारे में लोगों को यह भ्रम  होता है की यह भोजन में खाये गए बेमेल चीजों का नतीजा होता है । जैसे की दूध मछ्ली का सेवन साथ करना , दही के साथ उड़द दाल का सेवन करने के कारण ऐसा होता है की हमारे शरीर पर सफ़्र्द दाग होने लगते हैं और धीरे धीरे यह सारे शरीर पर फैलने भी लगते हैं । पर सच बात यह है की यह बहुत ही बड़ा भ्रम और मिथ्या है जो लोगों ने अपने मन में बना रखा है ।सफ़ेद दाग की बिमारी  होती है असल में एक प्रकार का डिसऑर्डर

सफ़ेद दाग की समस्या असल में एक प्रकार का डिसओडर है । यह एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। इसमें स्किन का रंग बनाने वाले सेल्स यानी खत्म होने लगते हैं या काम करना बंद कर देते हैं, जिससे शरीर पर जगह-जगह सफेद-से धब्बे बन जाते हैं। यह समस्या मोटे तौर पर होठों और हाथों पर, हाथ-पैर और चेहरे पर, फोकल या शरीर के कई हिस्सों पर दाग के रूप में सामने आती है।

सफ़ेद दाग की बिमारी  होती है असल में एक प्रकार का डिसऑर्डर

यह बात हम ऐसे ही नही कह रहे हैं यह बात स्किन के डॉक्टर्स ने बताई है की यह मात्र लोगों का भ्रम है जिसके चलते लोग कई बार अवसाद ग्रस्त तक हो जाते हैं । इतना ही नही उनको यह भी लगता है की इस बीमारी का तो कोई इलाज़ ही नही हैं और यह खट्टी चीजों का सेवन करने से या मछ्ली दूध का सेवन करने से होती है और फैलती भी है । यह भोजन संबंधी रोग है ही नही बल्कि यह एक प्रकार का ऑटो इम्यून सिंड्रोम है जो की हमारी रोग प्रति रोधक क्षमता को बाधित करता है । इसके कारण यह त्वचा का रंग बनाने वाली सेल्स को भी काम नही करने देता ।सफ़ेद दाग की बिमारी  होती है असल में एक प्रकार का डिसऑर्डर

इस रोग की रोक थाम के लिए सबसे पहले टाइट कपड़े पहनना और रबर केमिकल से दूर रहने की ही सलाह दी जाती है क्योंकि ऐसा करणही इस रोग को बढ़ावा देता है ।

दुनिया भर की लगभग 0.5 पर्सेंट से 1 पर्सेंट आबादी सफ़ेद दाग  से प्रभावित है, लेकिन भारत में इसका प्रसार बहुत ज्यादा है। सफ़ेद दाग  किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है, लेकिन सफ़ेद दाग  के आधा से ज्यादा मामलों में यह 20 साल की उम्र से पहले ही विकसित हो जाता है। वहीं 95 पर्सेंट मामलों में 40 वर्ष से पहले ही विकसित होता हैं। यह 30 % आनुवांशिक रोग है ।सफ़ेद दाग की बिमारी  होती है असल में एक प्रकार का डिसऑर्डर

सफ़ेद दाग की समस्या असल में एक प्रकार का डिसओडर है । यह एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। इसमें स्किन का रंग बनाने वाले सेल्स यानी खत्म होने लगते हैं या काम करना बंद कर देते हैं, जिससे शरीर पर जगह-जगह सफेद-से धब्बे बन जाते हैं। सफ़ेद दाग की बिमारी होती है असल में एक प्रकार का डिसऑर्डर

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