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nuclear wastewater को समुद्र में डालने का प्रभाव अप्रत्याशित

चीनी विदेश मंत्री के सहायक वू च्यांगहाओ ने हाल में चीन स्थित जापानी राजदूत को बुलाकर गंभीरता से परमाणु अपशिष्ट जल को समुद्र में डालने का मामला उठाया। इससे पहले दक्षिण कोरिया ने भी देश में स्थित जापानी राजदूत को बुलाकर इस मामले पर कड़ा विरोध जताया। चीन और दक्षिण कोरिया के अलावा, रूस और
nuclear wastewater को समुद्र में डालने का प्रभाव अप्रत्याशित

चीनी विदेश मंत्री के सहायक वू च्यांगहाओ ने हाल में चीन स्थित जापानी राजदूत को बुलाकर गंभीरता से परमाणु अपशिष्ट जल को समुद्र में डालने का मामला उठाया। इससे पहले दक्षिण कोरिया ने भी देश में स्थित जापानी राजदूत को बुलाकर इस मामले पर कड़ा विरोध जताया। चीन और दक्षिण कोरिया के अलावा, रूस और यूरोपीय संघ, यहां तक कि जापान के लोगों ने भी परमाणु अपशिष्ट जल को समुद्र में डालने का विरोध किया। लेकिन कुछ जापानी अधिकारियों ने कहा कि परमाणु अपशिष्ट जल पीने के बाद भी कोई समस्या नहीं होगी, तो वास्तव में यह सही है? जापानी मीडिया के अनुसार, जापान दो साल बाद लगातार 30 साल तक अपशिष्ट जल को समुद्र में डालेगा, जिसकी मात्रा 10 लाख टन से अधिक होगी। इतनी ज्यादा निकासी, इतने लंबे समय, इतना बड़ा पैमाना और इतना ऊंचा खतरा पहले से कभी नहीं आया।

जापान स्थित अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ हरित शांति संगठन के वरिष्ठ परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञ शॉन बर्नी ने कहा कि टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी की एएलपीए तकनीक रेडियोधर्मी ट्रिटियम या कार्बन-14 को नहीं हटा सकती है। वहीं अन्य रेडियो आइसोटोप को भी पूरी तरह नहीं हटाया जा सकता है। ये पदार्थ लंबे समय से समुद्री खाद्य श्रृंखला में इकट्ठा होंगे और संभवत: खाद्य श्रृंखला के जरिए मानव जाति पर प्रभाव डालेंगे। परमाणु अपशिष्ट जल को समुद्र में डालने से प्रकृति पर क्या असर पड़ेगा, इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।

जर्मन समुद्री विज्ञान संस्थान का अनुमान है कि अपशिष्ट जल की निकासी से 57 दिनों में विकिरण रिसाव का फैलाव प्रशांत महासागर के अधिकांश क्षेत्रों तक जा पहुंचेगा। अमेरिका और कनाडा 3 साल के बाद प्रभावित होंगे। लेकिन यह बहुत बेहूदा बात है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने जापान का आभार जताया। उन्होंने कहा कि फैसला करने में जापान सरकार ने पारदर्शी और खुला प्रयास किया।

क्या अमेरिका सच में परमाणु प्रदूषण से नहीं डरता, ऐसा नहीं है। अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (एफूडीए) के ज्ञापन के अनुसार, विकिरण और परमाणु प्रदूषण से संबंधित सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या की वजह से एफूडीए जापानी वस्तुओं पर निगरानी मजबूत करेगा। जापान में उत्पादित दूध, सीफूड, मांस, सब्जी और फल आदि उत्पादों को अमेरिका में पहुंचाने से रोका जाता है। अमेरिका एक तरफ जापान का समर्थन करता है, वहीं दूसरी तरफ जापानी उत्पादों पर पाबंदी लगाता है। यह दोहरे मापदंड की मिसाल ही है।

बताया जाता है कि अमेरिका 22 और 23 अप्रैल को वैश्विक जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन का आयोजन करेगा। इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन और रूस समेत 40 देशों के नेताओं को निमंत्रण भेजा है। शिखर सम्मेलन के आयोजन से पहले इतना गंभीर मामला आया, तब अमेरिका और जापान कैसे ऊर्जा किफायत और कम प्रदूषण निकासी को लेकर दूसरे देशों से मांग करेंगे? क्योंकि परमाणु अपशिष्ट जल को समुद्र में डालना सबसे भयानक प्रदूषण निकासी है।

news source आईएएनएस

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