इसलिए दिन में किया जाता है अंतिम संस्कार, रात के हैं ऐसे दुष्परिणाम
जयपुर, सनातन संस्कृति के धर्मशास्त्रों के अनुसार मानव जीवन को सोलह संस्कारों में पिरोया गया है। इसके अंतगर्त पहला संस्कार गर्भाधान संस्कार है जिसके कारण मानव जीवन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इसी तरह दूसरे सभी संस्कारों को बढ़ती उम्र के मुताबिक पूरा करता हुआ मानव जीवन सोलहवे संस्कार यानी अंतिम संस्कार की ओर बढ़ता है और आत्मा के शरीर त्याग करने के साथ ही अंतिम संस्कार किया जाता है। यह कहा जाता है कि जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो दाह संस्कार नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए शास्त्रों में श्मशान के कुछ नियम बनाए गए हैं।मृत्यु के बाद हर धर्म में मनुष्य के अंतिम संस्कार की अलग-अलग प्रथाएं हैं, कुछ शरीर को दफ़नाते हैं तो कुछ जलाते हैं, लेकिन हमें कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में पता चला है जो बहुत ही अजीब हैं, इनमें से कुछ पहले होती थीं और कुछ अब भी होती हैं। आइए, आज हम आपको बताते है अंतिम संस्कार से जुडी ऐसी ही परम्पराओं के बारें में। यदि कोई व्यक्ति रात में या शाम को मर जाता है, तो उसका अंतिम संस्कार सुबह सूर्योदय से पहले सूर्यास्त से पहले किया जाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद दफन को अशुभ माना जाता है।क्योंकि अगर सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार किया जाता है, तो अपराध बोध होता है। ;इससे मृतक को बाद में नुकसान होगा और नए जन्म में उसका एक अंग क्षतिग्रस्त हो सकता है। एक और मान्यता यह है कि सूर्यास्त के बाद स्वर्ग के द्वार बंद कर दिए जाते हैं और नरक के द्वार खोल दिए जाते हैं।