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ध्वनि प्रदूषण ने परिंदों को भुला दिया है चहचहाना

जयपुर। पक्षियों का कलरव हर किसी का मन मोह लेती है। बगीचे में इनके चहचहाने की आवाज़ से पूरा वातावरण पाक हो जाता है। मन को शांति और प्रकृति के आपने आपको जोड़ने का काम करते है ये पक्षी। लेकिन क्या आपने कभी नोट किया है कि अब इनकी आवाज कहीं खो गई है। कहीं
ध्वनि प्रदूषण ने परिंदों को भुला दिया है चहचहाना

जयपुर। पक्षियों का कलरव हर किसी का मन मोह लेती है। बगीचे में इनके चहचहाने की आवाज़ से पूरा वातावरण पाक हो जाता है। मन को शांति और प्रकृति के आपने आपको जोड़ने का काम करते है ये पक्षी। लेकिन क्या आपने कभी नोट किया है कि अब इनकी आवाज कहीं खो गई है। कहीं कहीं ही इनकी मधुर आवाज सुनने को मिलती है। इसी तरह से आपको  पता होगा कि जब भी इन्हें अपने आसपास खतरे का आभास होता है, तब ये पक्षी तेज आवाज़ करने लग जाते हैं। क्योंकि एक तो ये खुदो क बचाते हैध्वनि प्रदूषण ने परिंदों को भुला दिया है चहचहाना

और दुसरी तरफ ये इंसानों को भी उस खतरने का आभास कराते हैं। बता कि जंगल की खूबसूरती बढ़ाने में पेड़-पौधों के साथ-साथ पक्षियों की चहचहाहट का भी योगदान रहता है क्योकि पंछियों को आवाज़ के रूप में कुदरती संगीत मिला है जो जिंदगी की तालमेल में फिट हो जाता है। लेकिन दुख की बात है कि आजकल ये परिंदे धरती पर बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से इस कदर परेशान हैं कि इन्हें अपना अस्तित्व बचाये रखने में काफी मसकत करनी पड़ रही है। हाल ही में शोधकर्ताओं ने एक शोध में पाया कि ध्वनि प्रदूषण के कारण पक्षियों की चहचहाहट धीरे-धीरे गुम होती जा रही है।ध्वनि प्रदूषण ने परिंदों को भुला दिया है चहचहाना

शोध में ज्ञात हुआ है कि ये सोंगबर्ड्स शोर होने पर व्याकुल हो जाते हैं। उद्योगों तथा विमानो का शोर इन पक्षियों के लिये काफी कष्टदायी होता है इससे उनका अस्तित्व मिटा हुआ नज़र आ रहा है। वैज्ञानिकों ने बताया कि ज्यादा शोर से पक्षियों में कॉर्टिकोस्टेरोन हॉर्मोन का उत्सर्जन होता है जोकी इनमें तनाव के समय निकलने वाले हॉर्मोंस के जैसा ही होता है। इससे भी खतरनाक बात तो ये है कि इससे इनकी प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। इस बढ़ती तरक्की में ये पंछी अपनी प्राकृतिक आवाज़ निकालने की आदत को धीरे धीरे भुलकते जा रहे है।       ध्वनि प्रदूषण ने परिंदों को भुला दिया है चहचहाना

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