तो कृत्रिम टी कोशिका प्राकृतिक टी कोशिका से करती है कई गुना अच्छा काम
जयपुर। इंसान इंसान को संवारने के की ज़द में लगा हुआ है। इंसान को एक मशीन की तरह बदलने में अपना पुरजोर लगा रहा है। इंसान इंसान तो रहेगा लेकीन वह बहुत ही तरह से एक मशीन की तरह काम करेगा 1 घंटे के काम को 2 सेंकेड में करने वाला इंसान बना रहें है। इसके लिए पहले इंसान अपने आपके खंखाल रहा है। हाल ही में वैज्ञानीकों ने टी कोशिकाओं का विकास किया है, यह पुरे तरीके से कृत्रिम है। आपको बता दे की ये कृत्रिम कोशिका कैंसर और ऑटोम्यून्यून बीमारियों के इलाज के लिए अधिक प्रभावी कदम हो सकती है
और साथ ही मानव प्रतिरक्षा तंत्र कोशिकाओं के व्यवहार की बेहतर तरीके से समझ सकती है। यह टी सेल बहुत ही लचीली है। जिससे संक्रमण बुनियादी कार्यों को करने में आसान रास्ता बनाती है। ये कृत्रिम कोशिकायें शरीर में प्रतिरक्षा की कमी वाले लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा में काफि भागेदारी निभा सकती है। आप इससे तो वाकिफ होंगे की हमारे शरीर में संक्रमण तब होता है जब हमारा प्रतिरक्षा तंत्र किसी जीवाणु से कमजोर पड़ जाता है और ये जीवाणु संक्रमित क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए खून के माध्यम से बहते चले जाते हैं।
लेकीन टी कोशिकाओं में उनके सामान्य आकार के एक-चौथाई के रूप में छोटे होने की क्षमता होती है तो यह अपने मूल आकार से लगभग तीन गुना तक बढ़ सकती हैं, जो उन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करने वाले एंटीजनों से लड़ने या उन पर काबू पाने में मदद करता है। प्राकृतिक टी कोशिकायें बहुत नाजुक होती हैं और उन्हें मनुष्यों और अन्य जानवरों से निकालने के बाद, वे केवल कुछ दिनों तक जीवित ही रहते हैं। इसलिए वैज्ञानीकों को कृत्रिम कोशिका ही बनानी पड़ी जो की अपना कार्य प्राकृतिक टी कोशिकाओँ कि तरह ही करती है