Samachar Nama
×

इस ऋषि ने व्याभिचार पर रोक लगाने के लिए की थी विवाह परंपरा की शुरुआत

जयपुर। विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है,हिन्दू समाज में विवाह को आवश्यक संस्कार माना जाता है। विवाह वंशवृद्धि का एक जरिया माना जाता है, परिवार का जन्म भी विवाह के बंधन से ही हुआ है। विवाह के बगैर वंश वृद्धी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। घर, संसार और दुनिया का अस्तित्व
इस ऋषि ने व्याभिचार पर रोक लगाने के लिए की थी विवाह परंपरा की शुरुआत

जयपुर। विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है,हिन्दू समाज में विवाह को आवश्यक संस्कार माना जाता है। विवाह वंशवृद्धि का एक जरिया माना जाता है, परिवार का जन्म भी विवाह के बंधन से ही हुआ है। विवाह के बगैर वंश वृद्धी की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इस ऋषि ने व्याभिचार पर रोक लगाने के लिए की थी विवाह परंपरा की शुरुआत

घर, संसार और दुनिया का अस्तित्व विवाह के बंधन से है। लेकिन विवाह संस्कार आदि-अनादि काल से प्रचलन में नहीं था। लेकिन एक ऋषि के प्रयासों से वंशवृद्धि की इस परंपरा को विवाह के संस्कारों में बाधा गया।

इस ऋषि ने व्याभिचार पर रोक लगाने के लिए की थी विवाह परंपरा की शुरुआत

शास्त्रों के अनुसार ऋषि श्वेतकेतु ने विवाह संस्कारों की शुरुआत की थी। कौशीतकि उपनिषद के अनुसार श्वेतकेतु आरुणि के पुत्र और गौतम ऋषि के वंशज माने जाते थे। पांचाल देश के रहने वाले श्वेतकेतु की उपस्थिति राजा जनक की सभा में भी थी इनका विवाह देवल ऋषि की पुत्री सुवर्चला के साथ माना जाता था।

इस ऋषि ने व्याभिचार पर रोक लगाने के लिए की थी विवाह परंपरा की शुरुआत

प्राचीनकाल में विवाह संस्कार का अस्तित्व नहीं था उस समय स्त्रियां स्वतंत्र रुप से उन्मुक्त जीवन व्यतीत करती थीं। एक बार की बात है श्वेतकेतु अपने माता-पिता के साथ बैठे थे, तभी एक परिव्राजक आया और श्वेतकेतु की मां का हाथ पकड़कर उनको अपने साथ ले जाने लगा। यह देखकर श्वेतकेतु ने इसका विरोध किया तब उनके पिता ने कहा की स्त्रियां स्वतंत्र हैं वे किसी के भी साथ समागम कर सकती हैं।

इस ऋषि ने व्याभिचार पर रोक लगाने के लिए की थी विवाह परंपरा की शुरुआत

श्वेतकेतु को यह बात बुरी लगी उन्होंने व्याभिचार पर रोक लगाने के लिए व एक सभ्य समाज बनाने के लिए विवाह परंपरा को जन्म दिया। व जो स्त्री और पुरुष किसी दूसरे के साथ रमण करते हैं उसे पाप की श्रेणी में रखा।

Share this story