5 सितंबर से श्राद्ध या पितृपक्ष शुरू, बरतें ये सावधानियां
हिंदू धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा अजर—अमर है। आत्मा अपना पहला जीवन पूरा करते ही दूसरे जीवन की ओर अग्रसर होती है। इसलिए इंसान के मरणोपरांत धार्मिक क्रियाविधि द्वारा दाह संस्कार किया जाता है। यानि व्यक्ति के मरने के बाद जो संस्कार किया जाता है उसे श्राद्धकर्म कहा जाता है।
वेदों में ये मान्यता है कि मानव तीन ऋण लेकर पैदा होता है जिनमें देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण शामिल है।
प्रतिवर्ष भाद्रपत की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक 16 दिन तक पितृपक्ष माना जाता है। यानि 5 सितंबर 2017 दिन मंगलवार से पितृपक्ष शुरू है। इन दिनों लोग 16 दिनों तक अपने पितृ के प्रति श्राद्ध भाव से धार्मिक कर्म करते हैं। जो व्यक्ति पितृ के निमित्त श्राद्ध कर्म नहीं करते हैं उनसे पितृलोग नाराज हो जाते हैं और श्रापित करे देतें हैं जिससे व्यक्ति के जीवन में दुखों और कठिनाईयों का आगमन शुरू हो जाता है। आमजन की भाषा में इसे ही पितृदोष कहा जाता है।
पितृ पक्ष के दौरान ये काम ना करें—
पितृ पक्ष में श्राद्धकरने वाले को पान खाना, तेल लगाना, क्षौरकर्म, मैथुन व पराया अन्न खाना, यात्रा करना, क्रोध आदि नहीं करने चाहिए। वरना पितृगण नाराज होकर श्रापित भी करते हैं।
पितृदोष निवारण—
पितृ पक्ष में या फिर पितरों के श्राद्ध के समय यथाशक्ति ब्राह्मणों को खाना खिलाएं। या फिर किसी ब्राह्मण को आटा, फल, गुड, शक्कर, सब्जी आदि की दक्षिणा दें। अगर कोई गरीब व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध करने में आर्थिक रूप से समर्थ नहीं है तो उसे किसी पवित्र नदी के किनारे जाकर जल में काला तिल डालकर तर्पण करना चाहिए।
या फिर ब्राहमण को एक मुटठी काले तिल का दान करें। पितरों को यादकर गाय को हरा चारा खिलाने से भी पितृदोष में कमी आती है। इस प्रकार उपरोक्त उपाय कर अपने पितृदोष का यथाशीघ्र निवारण करें।