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इस दिशा में आंसू बहाकर भी कर सकते हैं पितरों को संतृप्त

पितृपक्ष में यह मान्यता हैं कि तिथि के मुताबिक अपने पितृ को मध्याह्न काल में यथा योग्य हव्य, कव्य दिया जाना चाहिए। वही मध्याह्न काल दोपहर 12 बजे से दो बजे तक माना जाता हैं वही पितृपख में अगर पास में धन हैं तो कई पंडितों को पितरों के निमित्त जिमाया जाता हैं वही पंडितों के अलावा धेवेते को भी पंडित की मान्यता हिंदू धर्म शास्त्रों ने दी हैं।
 इस दिशा में आंसू बहाकर भी कर सकते हैं पितरों को संतृप्त

आपको बता दें, कि 14 सितंबर को सूर्य अस्त होते सूर्य की रश्मियों पर बैठकर पितृगण धरती पर आ गए। वही धराधामवासी 16 दिनों तक तिथियों के मुताबिक पितरों का हव्य, कवय और जल प्रदान कर रहे हैं मगर जिनके पास पितरों को अर्पित करने के लिए कुछ नहीं हैं, वह केवल मात्र दक्षिण दिशा में आंसू बहाकर पितरों को संतृप्त कर सकते हैं क्योंकि हिंदू गरुड़ पुराण और वास्तुशास्त्र के मुताबिक दक्षिण दिशा पितरों को समर्पित मानी गई हैं। इस दिशा में आंसू बहाकर भी कर सकते हैं पितरों को संतृप्त

पितृपक्ष में यह मान्यता हैं कि तिथि के मुताबिक अपने पितृ को मध्याह्न काल में यथा योग्य हव्य, कव्य दिया जाना चाहिए। वही मध्याह्न काल दोपहर 12 बजे से दो बजे तक माना जाता हैं वही पितृपख में अगर पास में धन हैं तो कई पंडितों को पितरों के निमित्त जिमाया जाता हैं वही पंडितों के अलावा धेवेते को भी पंडित की मान्यता हिंदू धर्म शास्त्रों ने दी हैं। अगर पास में कुछ न हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुख कर आंसू बहाने से भी पितृगण तृपत हो जाते हैं  इस दिशा में आंसू बहाकर भी कर सकते हैं पितरों को संतृप्तवही ऐसी गरुड़ पुराण के मुताबिक अगर कोई बहुत ही गरीब हो तो वह केवल पितरों का स्वरूप स्मरण करने से उनको पुत्र और पौत्र का हव्य प्राप्त हो जाता हैं वही पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों को तिथि के मुताबिक दक्षिण द्रव्य दिए जाने की मान्यता हैं। जिन पितरों की तिथि याद न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जा सकता हैं वही पूर्णिमा के दिन मरने वाले पितरों का श्राद्ध भाद्रपद पूर्णिमा को होता हैं। वही पितृपक्ष में तर्पण का विशेष महत्व हिंदू धर्म शास्त्रों में बताया गया हैं। इस दिशा में आंसू बहाकर भी कर सकते हैं पितरों को संतृप्त

पितृपक्ष में यह मान्यता हैं कि तिथि के मुताबिक अपने पितृ को मध्याह्न काल में यथा योग्य हव्य, कव्य दिया जाना चाहिए। वही मध्याह्न काल दोपहर 12 बजे से दो बजे तक माना जाता हैं वही पितृपख में अगर पास में धन हैं तो कई पंडितों को पितरों के निमित्त जिमाया जाता हैं वही पंडितों के अलावा धेवेते को भी पंडित की मान्यता हिंदू धर्म शास्त्रों ने दी हैं। इस दिशा में आंसू बहाकर भी कर सकते हैं पितरों को संतृप्त

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