हजारों सालों के तप के समान पुण्य प्रदान करता है यह व्रत
एकादशी तिथि का धार्मिक रूप से विशेष महत्व होता हैं माघ मास में कृष्णपक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता हैं इस व्रत का फल हजारों वर्षों तक किए गए तप के बराबर प्राप्त होता हैं यह व्रत तिल से जुड़ा माना जाता हैं षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छह तरीको से प्रयोग किया जाता हैं इसमें तिल से स्नान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान भी शामिल होता हैं इसलिए इस व्रत को षटतिला एकादशी का व्रत कहा जाता हैं। एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता हैं।
षटतिला एकादशी व्रत में भगवान श्री हरि की आराधना विशेष मानी जाती हैं पूजा के समय काले तिल के इस्तेमाल का विशेष महतव बताया गया हैं इस दिन काले तिल का प्रयोग करने से पापों का नाश हो जाता हैं इस व्रत में काली गाय का भी महत्व होता हैं आराधना के बाद तिल से भरा बर्तन, छाता, घड़ा, वस्त्र आदि दान किया जाता हैं संभव हो तो काली गाय का दान करें। षटतिला एकादशी का व्रत करने वालों पर भगवान श्री विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती हैं।
इस उपवास को करने से आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती हैं इस व्रत के प्रीााव से नेत्र विकार दूर होते हैं सुहागिन महिलाओं को इस व्रत के प्रभाव से अंखड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता हैं पति पत्नी को मिलकर यह व्रत करना चाहिए। एकादशी की रात सच्चे मन से भगवान विष्णु का जागरण करना चाहिए। व्रत में जरूरतमंदों को तिल दान अवश्य करना चाहिए। इस व्रत में काले और नीले वस्त्रों को धारण नहीं करना चाहिए।