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शरद पूर्णिमा 2018 : यहां जानें क्या है सही तिथी और क्यों चंद्रमा की रोशनी में रखकर खाई जाती है खीर

जयपुर। हिन्दू धर्म में हर महीने कोई न कोई छोटा बडा त्यौहार होता रहता है, इसके साथ ही इन त्यौहार को हर कोई छोटे या बडे तरीके से निभाते हैं। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा हर महीने आती है पूर्णिमा में लोग व्रत करते हैं पूजा अर्चना करते हैं लेकिन अभी आने वाली पूर्णिमा विशेष मानी
शरद पूर्णिमा 2018 : यहां जानें क्या है सही तिथी और क्यों चंद्रमा की रोशनी में रखकर खाई जाती है खीर

जयपुर। हिन्दू धर्म में हर महीने कोई न कोई छोटा बडा त्यौहार होता रहता है, इसके साथ ही इन त्यौहार को हर कोई छोटे या बडे तरीके से निभाते हैं। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा हर महीने आती है पूर्णिमा में लोग व्रत करते हैं पूजा अर्चना करते हैं लेकिन अभी आने वाली पूर्णिमा विशेष मानी जाती हैं, क्योकि शरद पूर्णिमा यानी अश्विन मास की पूर्णिमा को सबसे शुभ माना जाता है।

शरद पूर्णिमा 2018 : यहां जानें क्या है सही तिथी और क्यों चंद्रमा की रोशनी में रखकर खाई जाती है खीर

इस साल शरद पूर्णिमा 23 अक्टूबर के दिन पड़ रही है। इसके साथ ही शरद पूर्णिमा में किया गया शुभ माना जाता है। आज इस लेख में हम शरद पूर्णिमा की विशेषता के बारे मे बता रहे हैं। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन धन के प्राप्ति के योग भी बनते हैं।

शरद पूर्णिमा 2018 : यहां जानें क्या है सही तिथी और क्यों चंद्रमा की रोशनी में रखकर खाई जाती है खीर

इसके साथ ही शरद पूर्णिमा के दिन दिखने वाले चंद्रमा से  एक विशेष प्रकार की औषधि निकलती है जिसे खाने से कई तरह के रोगो से मुक्ति मिलती है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणो के लिए कहा जाता है कि ये सबसे ज्यादा शीतल होती हैं।

शरद पूर्णिमा 2018 : यहां जानें क्या है सही तिथी और क्यों चंद्रमा की रोशनी में रखकर खाई जाती है खीर

शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके साथ ही इस दिन को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के ही दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। इसके साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से अमृत निकलता है जिसके सेवन से कई तरह की बीमारियां से मुक्ति मिलती है। चंद्रमा की इस विशेशता के कारण इस दिन खीर बनाने का विधान है। उस खीर को चंद्रमा की रोशनी में रात भर रख कर अगले दिन प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है।

 

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