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वैज्ञानिकों ने ‘वैक्यूम’ से भेजे इलेक्ट्रॉन, जानिए इसके बारे में !

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक ने क्रांतिकारी ट्रांजिस्टर प्रौद्योगिकी के तहत इलेक्ट्रॉनों को वैक्यूम (खाली जगह) से भेजकर एक ऐसी डिवाइस बनाई है जिसकी मदद लेने से सेमीकंडक्टर के उपयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी और इसके गर्म होने का खतरा कम होगा। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने ‘रॉयल मेलबर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ की प्रमुख
वैज्ञानिकों ने ‘वैक्यूम’ से भेजे इलेक्ट्रॉन, जानिए इसके बारे में !

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक ने क्रांतिकारी ट्रांजिस्टर प्रौद्योगिकी के तहत इलेक्ट्रॉनों को वैक्यूम (खाली जगह) से भेजकर एक ऐसी डिवाइस बनाई है जिसकी मदद लेने से सेमीकंडक्टर के उपयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी और इसके गर्म होने का खतरा कम होगा। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने ‘रॉयल मेलबर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ की प्रमुख शोधकर्ता श्रुति निरंतर के हवाले से बताया कि यह इलेक्ट्रॉनों को सिलिकॉन की अपेक्षा संकुचित वैक्यूम से भेजता है।

निरंतर ने कहा, “प्रत्येर कम्प्यूटर और फोन में सिलिकॉन से बने करोड़ों से लाखों इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिस्टर होते हैं, लेकिन यह प्रौद्योगिकी अपनी भौतिक सीमा पर पहुंच गई है, जहां सिलिकॉन के अणु करंट प्रवाहित होने के रास्ते में मिलते हैं जिससे गर्मी बढ़ जाती है और गति कम हो जाती है।”

उन्होंने कहा, “हमारी वायु माध्यम ट्रांजिस्टर प्रौद्योगिकी में करंट हवा के माध्यम से जाएगा, तो इसे धीमा करने के लिए कोई अवरोध नहीं होगा और उष्मा उत्पन्न करने के लिए कोई पदार्थ नहीं लगा है।”

शोध दल के प्रमुख एसोसिएट प्रोफेसर शरत श्रीराम ने कहा कि अणुओं से भरे पारंपरिक ठोस ट्रांजिस्टर से इलेक्ट्रॉनों को गुजारना बिल्कुल एक भीड़ भरी गली से गुजरने जैसा है।

शरत ने कहा, “भीड़ आपकी गति कम करती है और आपकी ऊर्जा को खत्म करती है। वहीं दूसरी तरफ वैक्यूम में यात्रा करना एक खाली राजमार्ग पर यात्रा करने जैसा है, जहां आप ऊंची ऊर्जा क्षमता के साथ तेज गाड़ी चला सकते हैं।”

प्रमुख लेखक निरंतर ने कहा कि एक बाल की मोटाई से 50,000 गुना पतले खाली स्थानों से इलेक्ट्रॉनों को गुजारने की प्रक्रिया ट्रांजिस्टर का लघुरूप है।

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस

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