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वैज्ञानिकों ने ओजोन छिद्रों के व्यास में पाई कमी

जयपुर। ओजोन परत में प्रदुषण के कारण कई तरह के बड़े छिद्र हो गये है। जिसके कारण से धरती पर आसानी से यूवी किरणें प्रवेश करती है जो धरती पर निवास कर रहे जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होती हैं। लेकिन आपको जानकारी दे दे कि नासा के वैज्ञानिकों ने हाल ही में
वैज्ञानिकों ने ओजोन छिद्रों के व्यास में पाई कमी

जयपुर। ओजोन परत में प्रदुषण के कारण कई तरह के बड़े छिद्र हो गये है। जिसके कारण से धरती पर आसानी से यूवी किरणें प्रवेश करती है जो धरती पर निवास कर रहे जीवों के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होती हैं। लेकिन आपको जानकारी दे दे कि नासा के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक सैटेलाइट उपकरण की मदद से ओजोन छिद्र के बारे में जानकारी हासिल की है। नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि क्लोरीन उत्पादों पर नियंत्रण की वज़ह से ओजोन छिद्र के व्यास में कमी आई है। इन्होंने बताया कि ये कमी सीएफसी गैस पर रोक के कारण हुई है। बता दे कि नासा के औरा उपग्रह ने यह डाटा एकत्रित किया है।वैज्ञानिकों ने ओजोन छिद्रों के व्यास में पाई कमी

नासा के मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट स्थित गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में प्रमुख भूवैज्ञानिक, पॉल ए. न्यूमैन ने इसके बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस वर्ष अंटार्कटिक ओजोन छिद्र असाधारण रूप से छोटा हो गये है। जैसा की हम जानते है कि सीएफसी ओजोन गैस के अणुओं को नष्ट कर देती है और फिर हानिकारक पराबैंगनी किरणें हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाती हैं जिससे की स्किन कैंसर का खतरा भी हो सकता है। ओजोन परत को सरंक्षित करने के लिये क्लोरीन उत्पादों पर रोक लगाने संबंधी प्रस्ताव पारित किया।वैज्ञानिकों ने ओजोन छिद्रों के व्यास में पाई कमी

अंटार्कटिका क्षेत्र में हर साल बनने वाले ओजोन छिद्रों में सबसे ज्यादा कमी पाई गयी है। नासा के वैज्ञानिकों ने इस बारे में बताया कि 11 सितंबर को ओजोन छिद्र में सबसे ज्यादा विस्तार हुआ, जो कि आकार में लगभग अमेरिका के क्षेत्र का ढाई गुना था। इसके बाद ये सितंबर से अक्टूबर तक ये छोटा होता ही जा रहा है और कुछ ही महिनों में ये पूरी तरह से बंद हो जायेगा। आपको जानकारी दे दे कि उपग्रह ओजोन के लिये माइक्रोवेव्स को यूज में लाता है। यह विकिरण वायुमंडल में मौजूद गैसों का पता लगाती हैं।वैज्ञानिकों ने ओजोन छिद्रों के व्यास में पाई कमी

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