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SANT RAVIDAAS : संत रविदास की जयंती आज ,पढ़िए हिन्दू धर्म के महान संत के बारे में

आज संत रविदास जी की जयंती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ये जयंती माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस बार ये 27 फरवरी को मनाई जा रही है। संत रविदास हिन्दू धर्म में हुए महान संतो में से एक है, वे एक अत्यंत सरल व्यक्ति थे जिन्होंने सांसारिक माया को त्याग कर हृदय
SANT RAVIDAAS : संत रविदास की जयंती आज ,पढ़िए हिन्दू धर्म के महान संत के बारे  में

आज संत रविदास जी की जयंती है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ये जयंती माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस बार ये 27 फरवरी को मनाई जा रही है। संत रविदास हिन्दू धर्म में हुए महान संतो में से एक है, वे एक अत्यंत सरल व्यक्ति थे जिन्होंने सांसारिक माया को त्याग कर हृदय की पवित्रता पर बल दिया। इस बात को लेकर उनकी एक लोक प्रसिद्ध कहावत भी है जो आज भी बोली जाती है , ” जो मन चंगा तो कठौती में गंगा। ”

SANT RAVIDAAS : संत रविदास की जयंती आज ,पढ़िए हिन्दू धर्म के महान संत के बारे  में

इस कहावत से संबंधित एक लोकप्रिय कथा भी है। कहते है की एक बार एक महिला संत रविदास जी के पास से होकर जा रही थी ,संत रविदास लोगो के जूते सिल रहे थे और ईश्वर के भजन गाते हुए उनका स्मरण कर रहे थे। तभी वह महिला उनके पास गई और उन्हें गंगा स्नान करने की सलाह दी। ये सुनकर संत रविदास ने यही लोकप्रिय कहावत कह दी की “जो मन चंगा तो कठौती में गंगा।” यानि की यदि आपका मन पावन है तो यही पर गंगा है। ये सुनकर उस महिला ने रविदास जी महाराज से कहा की यदि ऐसा ही है तो मेरी झुलनि जो है वो गंगा में गिर गयी थी, चूँकि आपकी कठौती में गंगा है तो इसमें से मेरी झुलनी ढुंढ दीजिये। इसके बाद जो हुआ उसने उस महिला को हैरान कर के रख दिया। संत रविदास ने महिला के कहने पर अपने चमडा भिगोने के लिए रखे कठौती में हाथ डाला और उसमे से उस महिला की झुलनी निकाल कर दे दी। इस किस्से के बाद से रविदास जी महाराज के चर्चे दूर दूर तक फ़ैल गए और वे लोगो के बीच में लोकप्रिय हो गए।

SANT RAVIDAAS : संत रविदास की जयंती आज ,पढ़िए हिन्दू धर्म के महान संत के बारे  में

मीरा बाई के थे गुरु

कहते है की रविदास जी मीरा बाई के भी गुरु थे। मीरा ने संत रविदास से ही प्रेरणा ली थी। ये भी कहा जाता है की उन्होंने कई बार मीरा के प्राणो की रक्षा की थी। इसके अलावा रविदास जी जाती प्रथा के भी विरोधी थे और इसको लेकर उन्होंने एक दोहा भी रचा था।

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।”

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