भारतीय विश्वविद्यालयों को दुनिया के विश्वविद्यालयों समकक्ष बनाने और उन्हें ग्लोबल रैंकिंग में लाने के लिए विशेष रूप से अनुसंधान और प्रकाशनों की अहमियत पर ध्यान देने की जरूरत है। यह बात भारतीय विश्वविद्यालयसें में सुधार लाने और उनका महत्वाकांक्षी विकास करने के लिए विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत 10 सूत्री योजना में कही गई है।
यह योजना ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर सी. राजकुमार और क्यूएस क्वाकक्वारेली साइमंड्स के रीजनल डायरेक्टर (मध्यपूर्व, उत्तर अफ्रीका और दक्षिण एशिया) और क्यूएस आईजीएयूजीई इंडियन कॉलेज यूनिवर्सिटी रेटिंग्स के सीईओ अश्विन फर्नाडीज ने सोमवार को यहां एक कार्यक्रम में पेश की।
दोनों विशेषज्ञों ने भारत के उच्च शैक्षणिक संस्थानों को अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के समकक्ष बनाने पर बल दिया और कहा कि इसके लिए रणनीति, परिकल्पना और बुनियादी ढांचों पर निवेश की जरूरत है जिससे इन्हें वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय रैकिंग में पहचान मिल सके।
सुधार योजना में कहा गया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों को ग्लोबल रैंकिंग में जगह बनाने के लिए अपने खराब प्रदर्शन पर अवश्य ध्यान देना चाहिए और खासतौर से अनुसंधान व प्रकाशनों के महत्व समझना चाहिए जोकि ग्लोबल रैंकिंग हासिल करने के लिए आवश्यक मानदंड है।
रैंकिंग में जगह पाने के अन्य कारकों में अकादमिक नवाचार, बौद्धिक आजादी और अनुसंधान में उत्कृष्टता को लगातार बढ़ाने का सुझाव दिया गया है।
इसके अलावा, ग्लोबल रैंकिंग हासिल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीयकरण को एक महत्वपूर्ण मानदंड बताया गया है।
इसके तहत अंतर्राष्ट्रीय छात्रों, अंतर्राष्ट्रीय फैकल्टी की संख्या व प्रभाव के साथ-साथ अनुसंधान, शिक्षण और फैकल्टी व छात्रों के आदान-प्रदान में वैश्विक साझेदारी शामिल है।
विशेषज्ञों ने कहा कि ग्लोबल रैंकिंग फ्रेमवर्क में उच्च शैक्षणिक संस्थानों की संस्थागत गुणवत्ता का सूचक बनता जा रहा है और सही मायने में विश्वविद्यालयों के वैश्विक प्रभाव का शक्तिशाली मानदंड बन गया है।
प्रोफेसर सी. राजकुमार ने कहा, “विश्वविद्यालयों के प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए ग्लोबल रैंकिंग प्रभावशाली तरीका बनकर उभरा है। भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में शामिल होने पर गंभीर बहस चल रही है, इसलिए इनमें सुधार की जरूरत है।”
न्यूज स्त्रोत आईएएनएस