एक सपने ने राजा जनक को ऐसे भोगी से बना दिया योगी
राजा जनक के बारे में कहा जाता हैं,कि वह अक्सर भोग विलास में ही लिप्त रहते थे। एक बार राजा जनक सो रहे थे तभी उन्होंने सपना देखा कि शत्रु देश की प्रबल सेना ने उनकी राजधानी मिथिला पर आक्रमण कर दिया हैं। युद्ध में शत्रुसेना की विजय हो गई और राजा जनक की पराजय हो गई। वही राजा जनक को बंदी बनाकर विजेता राजा के सामने पेश किया गया। विजयी राजा ने आदेश दिया कि या तो राजा जनक बिना किस वस्त्र के नंग्न होकर अपनी राजधानी के बीच से गजरता हुआ अपने राज्य की सीमा से बाहर जाए,वरना उनका वध कर दिया जाएगा।
पहले विकल्प को स्वीकार करते हुए राजा जनक बिल्कुल नग्न अवस्था में राजधानी से गुजरते हुए मिथिलापुरी से बाहर एक वृक्ष के नीचे खड़े हो होकर अपनी दुरावस्था पर विलाप करने लगे। नींद में राजा को बैचेन देखकर रानी ने राजा को जगाया और उनकी इस बैचेनी की वजह पूछी। जनक हड़बड़ाकर उठे और उन्होंने रानी को अपना स्वप्न सुनाया।
इस बात का अहसास तब होगा जब आप सौ साल के जीवन की समाप्ति पर आत्म जागरण को प्राप्त होगे। जनक ने सुना स्वप्न और जागृति की इस भूल-भूलैया पर विचार किया,समझा और उसी क्षण से वे जनक से जनक विदेह बन गए।