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दुनिया में फटकार लेकिन शर्म पाकिस्तान को नहीं आती

लगभग दो सप्ताह पहले संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा कि वे पाकिस्तान के एक प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीस खट्टक के ‘जबरन लापता होने से स्तब्ध’ हैं। खट्टक पिछले साल से लापता हैं। नेशनल इक्वालिटी पार्टी के अध्यक्ष और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ता प्रोफेसर मुहम्मद सज्जाद राजा
दुनिया में फटकार लेकिन शर्म पाकिस्तान को नहीं आती

लगभग दो सप्ताह पहले संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा कि वे पाकिस्तान के एक प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीस खट्टक के ‘जबरन लापता होने से स्तब्ध’ हैं। खट्टक पिछले साल से लापता हैं।

नेशनल इक्वालिटी पार्टी के अध्यक्ष और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ता प्रोफेसर मुहम्मद सज्जाद राजा ने गुरुवार को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद के 44वें नियमित सत्र में इमरान खान की अगुवाई वाली सरकार की निंदा की।

राजा ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा, “पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित बाल्टिस्तान में हो रहीं न्यायेत्तर हत्याएं स्वीकार्य नहीं हैं। नागरिक आज आपके समक्ष खड़े हैं और दमन तथा हमारे लोगों की न्यायेत्तर हत्याओं को रोकने के लिए आपसे हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे हैं। आजाद का अर्थ है फ्री लेकिन यह एक झूठा तमगा है जो सच्चाई को घृणित तरीके से छिपाने के लिए हमारे लोगों से जुड़ा हुआ है। वास्तव में, पाकिस्तान के खिलाफ किसी भी तरह की असहमति को सेना के अत्याचारों और आईएसआई के माध्यम से कुचल दिया जाता है।”

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने 29 जून को बयान में ‘पाकिस्तानी सरकार की प्रत्यक्ष भागीदारी या उसकी परोक्ष सहमति से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को धमका कर, गुप्त हिरासत में लेकर, यातनाएं देकर और जबरन लापता कर व्यापक स्तर पर चुप कराने की’ निंदा की थी।

बयान में पाकिस्तान में लोगों के रातोंरात अचानक गायब हो जाने के लंबे इतिहास का उल्लेख किया गया। इनमें मानवाधिकार और अल्पसंख्यकों के हितों के लिए आवाज उठाने वाले भी शामिल हैं और साथ ही सरकार व सेना की आलोचना करने वाले विपक्षी समूहों के सदस्य भी शामिल हैं।

बयान में कहा गया है कि कई सरकारों द्वारा कहा गया कि जबरन लापता होने के मामलों को आपराधिक मामला बनाया जाएगा लेकिन किसी ने भी ठोस कदम नहीं उठाया और यह काम बिना रोकटोक जारी है।

बयान में कहा गया है कि जबरन लापता किए जाने के मामलों को रोकने में सरकार की नाकामी का कोई औचित्य नहीं हो सकता है और इस तरह के सभी मामलों की जांच की जानी चाहिए, मुकदमा चलाया जाना चाहिए और दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।

यह केवल मानवाधिकार कार्यकर्ता ही नहीं हैं जिन्हें पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा निशाना बनाया जा रहा है।

आंतरिक मंत्रालय द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ बयानबाजी को रोकने के लिए सूचीबद्ध उपायों और विशेष रूप से विदेश में रहने वाले पत्रकारों को लक्षित करने के लिए जारी किए गए एक आंतरिक मेमो के लीक होने से सरकार के चौंकाने वाला एजेंडा उजागर हुआ है।

18 जून के इस गोपनीय मेमो में छह पत्रकारों (पांच पाकिस्तानी और एक अफगान नागरिक) के बारे में कहा गया है कि वे ‘यूरोप और अमेरिका में ऐसी विभिन्न गतिविधियों में शामिल हैं, जो पाकिस्तान के विदेशी हितों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहीं हैं।’

इसमें इन पत्रकारों पर ‘छद्म नाम से विदेशी मीडिया के लिए या तो पाकिस्तान विरोधी गतिविधियों में भाग लेने या राज्य विरोधी सामग्री का उत्पादन करने’ का आरोप लगाया गया है।

सेना की खुफिया एजेंसियों और नागरिक प्रशासन के शीर्ष स्तरों पर भेजे गए इस मेमो में कहा गया है, “आपसे अनुरोध है कि इनकी गतिविधियों और इनके सोशल मीडिया खातों की सख्ती से निगरानी की जाए।”

पेरिस स्थित स्वतंत्र एनजीओ रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने लीक हुए मेमो की सामग्री को ‘स्तब्धकारी’ बताया और चेतावनी दी कि ‘पाकिस्तानी अधिकारियों को इन पत्रकारों या उनके परिवारों के साथ होने वाली किसी भी बात के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।’

आरएसएफ के एशिया-पैसिफिक डेस्क के प्रमुख डैनियल बस्टर्ड ने कहा, “हमें मूर्ख नहीं बनना है। हो सकता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने लोगों की राय को पूर्वाग्रहग्रस्त करने और पत्रकारों को डराने के लिए इस दस्तावेज को खुद लीक किया हो।”

आरएसएफ ने कहा कि इसने वर्ष की शुरूआत से ही विदेश स्थित पाकिस्तानी पत्रकारों को निशाना बनाने की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी है। सबसे गंभीर मामला बलूचिस्तान टाइम्स वेबसाइट के संपादक साजिद हुसैन की स्वीडन में रहस्यमय हालात में हुई मौत का है, जिनका शव उनके लापता होने के सात हफ्ते बाद अप्रैल के आखिर में मिला था।

उन्होंने कहा, “हुसैन की मौत ने इसलिए और भी परेशान कर दिया क्योंकि यह नीदरलैंड में स्व-निर्वासन में रह रहे पाकिस्तानी ब्लॉगर अहमद वकास गोराया पर हमले के ठीक एक महीने बाद हुई। गोराया पर उनके रॉटरडैम स्थित घर के बाहर दो व्यक्तियों ने हमला किया और धमकाया था। जिन्होंने हमला किया, उनके काम का तरीका पाकिस्तानी जासूसी एजेंसियों की तरह था।”

आरएसएफ के 2020 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में से पाकिस्तान 145वें स्थान पर है, जो 2019 की तुलना में तीन स्थान नीचे है।

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस

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