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श्रावन के पहले मंगलवार को एक बार जरुर करें हनुमान जी के इन मंत्रों का जाप

जयपुर । हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित होता है। तथा इस दिन उसी देवी या देवता की पूजा अर्चना की जाती है। आज मंगलवार हैं। तथा आज का दिन बेहद खास हैं क्योंकि आज भगवान शिव के प्रिय श्रावन मास का पहला मंगलवार
श्रावन के पहले  मंगलवार को  एक बार जरुर करें हनुमान जी के इन मंत्रों का जाप

जयपुर । हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित होता है। तथा इस दिन उसी देवी या देवता की पूजा अर्चना की जाती है। आज मंगलवार हैं। तथा आज का दिन बेहद खास हैं क्योंकि आज भगवान शिव के प्रिय श्रावन मास का पहला मंगलवार है इस लिए आज महायोग बन रहा है। वैसे तो हर  मंगलवार को भक्त दुखों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा करते हैं। लेकिन आज के दिन हनुमान जी की पूजा का विशेष महत्व हैं। आज हम आपके लिए इस आर्टिकल में हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ खास मंत्र लेकर आए हैं।

 
श्रावन के पहले  मंगलवार को  एक बार जरुर करें हनुमान जी के इन मंत्रों का जाप
 
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय
नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।

प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।

मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन ।
शत्रून संहर मां रक्षा श्रियं दापय मे प्रभो।।

वायुपुत्र ! नमस्तुभ्यं पुष्पं सौवर्णकं प्रियम् |
पूजयिष्यामि ते मूर्ध्नि नवरत्न – समुज्जलम् ||

श्रावन के पहले  मंगलवार को  एक बार जरुर करें हनुमान जी के इन मंत्रों का जाप

शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा।

हनुमान अंगद रन गाजे।
हांके सुनकृत रजनीचर भाजे।।

नासे रोग हरैं सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा।।
अज्जनागर्भ सम्भूत कपीन्द्र सचिवोत्तम।
रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा।।

श्रावन के पहले  मंगलवार को  एक बार जरुर करें हनुमान जी के इन मंत्रों का जाप
हनुमान जी को कठिन तपस्या से ही नहीं बल्कि एक मंत्र से भी खुश करके आशीर्वाद हासिल कर सकते हैं।
श्रावन के पहले  मंगलवार को  एक बार जरुर करें हनुमान जी के इन मंत्रों का जाप
आदिदेव नमस्तुभ्यं सप्तसप्ते दिवाकर !
त्वं रवे तारय स्वास्मानस्मात्संसार सागरात!!

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं कपीश्वर |
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे ||

दिव्यनागसमुद्भुतं सर्वमंगलारकम् |
तैलाभ्यंगयिष्यामि सिन्दूरं गृह्यतां प्रभो ||

नीलोत्पलैः कोकनदैः कह्लारैः कमलैरपि |
कुमुदैः पुण्डरीकैस्त्वां पूजयामि कपीश्वर ||

मध्वाज्य – क्षीर – दधिभिः सगुडैर्मन्त्रसन्युतैः |
पन्चामृतैः पृथक् स्नानैः सिन्चामि त्वां कपीश्वर ||

सुवर्णकलशानीतं सुष्ठु वासितमादरात् |
पाद्योः पाद्यमनघं प्रतिफ़गृह्ण प्रसीद मे ||

नवरत्नमयं दिव्यं चतुरस्त्रमनुत्तमम् |
सौवर्णमासनं तुभ्यं कल्पये कपिनायक ||

श्रीरामचरणाम्भोज-युगल-स्थिरमानसम् |
आवाहयामि वरदं हनुमन्तमभीष्टदम् ||

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