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नीली-काली रंग की खोजी गई मकड़ी की नई प्रजाति

जयपुर। प्रकृति में कई तरह के जीव पाये जाते हैं। इनकी खोज शोधकर्ता समय समय पर करते रहते है। मिसीसिपी यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान विभाग के शोधकर्ता स्कोलर एंड्र्यू स्नाइडर, अक्सर जंगलों में शोध के लिये घूमते रहते है। आपको जानकारी दे दे कि स्नाइडर को सरीसृपों और उभयचरों पर जानकारी एकत्रित करने के लिये
नीली-काली रंग की खोजी गई मकड़ी की नई प्रजाति

जयपुर। प्रकृति में कई तरह के जीव पाये जाते हैं। इनकी खोज शोधकर्ता समय समय पर करते रहते है। मिसीसिपी यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान विभाग के शोधकर्ता स्कोलर एंड्र्यू स्नाइडर, अक्सर जंगलों में शोध के लिये घूमते रहते है। आपको जानकारी दे दे कि स्नाइडर को सरीसृपों और उभयचरों पर जानकारी एकत्रित करने के लिये हर तरफ अपनी आँखों जमाई रखनी पड़ती है।नीली-काली रंग की खोजी गई मकड़ी की नई प्रजाति

इसी तरह से उन्होंने मकड़ी की एक नई प्रजाति नीली-काली टैरंटुला की खोजा की है। स्नाइडर इसके बारे में बताते है कि उन्हें पेड़ पर नीली मकड़ी नज़र आई थी। गौर से देखने पर ज्ञात हुआ कि वह एक छोटी सी टैरंटुला मकड़ी है। आपको पहले की जानकारी दे दे कि इस मकड़ी के पैरों पर कोबाल्ट की परत होती है और ये टैरंटुला सामान्यतया भूमध्यरेखीय क्षेत्र में रहती हैं, मगर इनकी कई सारी प्रजातियां शीतोष्ण प्रदेशों में भी पाई जाती हैं, तो कुछ दक्षिणी अमेरीका में भी। इसकी कुछ किस्में विशालकाय होती हैं और मज़बूत विषदन्ती होती हैं।नीली-काली रंग की खोजी गई मकड़ी की नई प्रजाति

ये इतनी खतरनाक होती है कि ये मकड़ियाँ अपने मज़बूत विषदन्तों से गहरे घाव कर सकती हैं। वैसे तो दिखने में डरावनी और खूंखार टैरंटुला इंसानों पर आक्रमण नहीं करतीं है। टैरंटुला का डंक किसी कीट, चूहे, या गिलहरी जैसे छोटे स्तनधारी के लिए खतरनाक हो सकता है। स्नाइडर इसके बारे में बताते है कि टैरंटुला का पूरा शरीर और खासकर टाँगें घने बालों से ढँकी हुई रहती हैं। इसी के साथ बताते दे कि इनको छूने पर दो अलग परिस्थितियों में टैरंटुला दो भिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ देती हैं।नीली-काली रंग की खोजी गई मकड़ी की नई प्रजाति

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