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पढ़िए महान भक्त नरसी मेहता की कथा जब उन्होंने धन के बदले गिरवी रखा मूंछ का बाल

भगवान कृष्ण के भक्तों में नरसी मेहता का नाम प्रमुखता से शामिल किया जाता है। उनकी भक्ति के साथ ही दानशीलता भी बहुत प्रसिद्ध है। नरसीजी ने भगवान कृष्ण की भक्ति में अपना सबकुछ दान कर दिया था। मान्यता है कि इस महान भक्त के वश में होकर ही कृष्ण ने नानी बाई का मायरा
पढ़िए महान भक्त नरसी मेहता की कथा जब उन्होंने धन के बदले गिरवी रखा मूंछ का बाल

भगवान कृष्ण के भक्तों में नरसी मेहता का नाम प्रमुखता से शामिल किया जाता है। उनकी भक्ति के साथ ही दानशीलता भी बहुत प्रसिद्ध है। नरसीजी ने भगवान कृष्ण की भक्ति में अपना सबकुछ दान कर दिया था। मान्यता है कि इस महान भक्त के वश में होकर ही कृष्ण ने नानी बाई का मायरा भरा था।

एक कथा के अनुसार, जब नरसीजी अपना सबकुछ दान करने के बाद जब साधु—संतों के साथ तीर्थयात्रा कर रहे थे तो उनकी मुलाकात कुछ याचकों से हुई। वे उनसे धन, भोजन और जीवन के लिए जरूरी चीजें मांगने लगे। चूंकि भक्त नरसी अपना सर्वस्व दान कर ही चुके थे, इसलिए वे धन देने में समर्थ नहीं थे।

आखिरकार उन्हें एक उपाय सूझा। वे एक साहूकार के पास गए और अपनी मूंछ का एक बाल उसके पास गिरवी रख आए। उस जमाने में मूंछ के बाल को भी प्रतिष्ठा और सत्यनिष्ठा का प्रतीक समझा जाता था।

साहूकार ने उन्हें मूंछ के बाल के बदले कर्ज दे दिया। नरसीजी ने वह पूरा धन याचकों को दे दिया। इस घटना को जब एक व्यक्ति ने देखा तो उसे लालच हो गया। वह भी इसी तरीके से धन प्राप्त करना चाहता था।

मौका देखकर वह उसी साहूकार के पास गया और बोला— मुझे भी मूंछ के बाल के बदले उतना ही धन दे दीजिए जितना कि आपने नरसी को दिया था।

साहूकार ने सहमति जता दी। उसने मूंछ का बाल मांगा। व्यक्ति ने मूंछ का बाल दिया, लेकिन साहूकार संतुष्ट नहीं हुआ। उसने कहा— यह बाल सीधा नहीं है, इसमें अमुक कमी है। कोई दूसरा दीजिए।
धन के लोभ में वह व्यक्ति मूंछ के बाल उखाड़कर देता रहा और साहूकार कमियां निकालता रहा। अंतत: उस व्यक्ति ने पूछा— मुझे मूंछ का बाल तोड़ने में जो दर्द हो रहा है, उसका आपको अंदाजा भी नहीं है। मेरी आंखों में आंसू आ गए हैं।

साहूकार ने कहा— मित्र, तुम्हारी मूंछ का बाल इस योग्य ही नहीं कि मैं उसे गिरवी रखकर एक फूटी कौड़ी भी दे दूं। मैंने नरसी को भी इसी तरह परखा था, परंतु उसने अपने कष्ट की परवाह नहीं की। उसके लिए तो याचकों का अभाव ही सबसे बड़ा दर्द था। इसलिए मैंने उसके मूंछ के बाल के बदले धन दे दिया। जिसमें दीन—दुखी के लिए इतना समर्पण हो, उसे मानव ही नहीं ईश्वर भी इन्कार नहीं कर सकता।

 

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