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शहादत का संदेश देता हैं मुहर्रम

इस्लाम धर्म में मुहर्रम को बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना जाता हैं वही विश्व ने अगणित दुखदायी व आत्मा को झकझोरने वाली घटनाएं और मातम करने वालों के आंसुओं के दरिया बहते देखे होंगे। मगर इतिहास के किसी भी दौर में मनुष्य ने इतने अधिक आंसू नहीं बहाए होंगे और मातम न किया होगा, जितना कि करबला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर हुआ। बता दें कि नबी के प्यारे हजरत इमाम हुसैन का जन्म इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक तीन शाबान चार हिजरी सोमवार को हुआ था।
 शहादत का संदेश देता हैं मुहर्रम

आपको बता दें, इस्लाम धर्म में मुहर्रम को बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना जाता हैं वही विश्व ने अगणित दुखदायी व आत्मा को झकझोरने वाली घटनाएं और मातम करने वालों के आंसुओं के दरिया बहते देखे होंगे। मगर इतिहास के किसी भी दौर में मनुष्य ने इतने अधिक आंसू नहीं बहाए होंगे और मातम न किया होगा, जितना कि करबला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर हुआ। शहादत का संदेश देता हैं मुहर्रम बता दें कि नबी के प्यारे हजरत इमाम हुसैन का जन्म इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक तीन शाबान चार हिजरी सोमवार को हुआ था। वही हुसैन की मां रसूल ए मकबूल हजरत मुहम्मद की सबसे प्यारी बेटी हजरत फातिमा थी। वही आपके पिता का नाम हजरत अली था। शहादत का संदेश देता हैं मुहर्रम

वही हजरत मुहम्मद ने ही इनका पालन पोषण किया था। हदीसों से ज्ञात होता हैं कि रसूलल्लाह हजरत मुहम्मद को अपने नवासे इमाम हुसैन से बड़ा स्नेह था। वही एक बार की बात हैं कि हजरत फातिमा के घर के आगे से हजरत मुहम्मद का गुजरना हुआ। शहादत का संदेश देता हैं मुहर्रम इमाम हुसैन के रोने की आवाज आई आप फौरन हजरत फातिमा के पास गयें और कहा, बेटी, तू इस बच्चे को रुला कर मुझे दुख देती हैं इतना प्यार था हमारे रसूल को अपने नवासे से। इसी तरह एक बार की बात हैं कि हजरत मुहम्मद साहब ए कराम के बीच में बैठे हुए ​थे तो उन्होंने कहा, हुसैन मुझसे हैं, मैं हुसैन से हूं। ऐ खुदा जो हुसैन को दोस्त रखता हैं, तू उसे दोस्त रख। जिसने मुझसे मुहब्बत की, उसने खुदा से मुहब्बत की।  शहादत का संदेश देता हैं मुहर्रम

इस्लाम धर्म में मुहर्रम को बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना जाता हैं वही विश्व ने अगणित दुखदायी व आत्मा को झकझोरने वाली घटनाएं और मातम करने वालों के आंसुओं के दरिया बहते देखे होंगे। मगर इतिहास के किसी भी दौर में मनुष्य ने इतने अधिक आंसू नहीं बहाए होंगे और मातम न किया होगा, जितना कि करबला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर हुआ। बता दें कि नबी के प्यारे हजरत इमाम हुसैन का जन्म इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक तीन शाबान चार हिजरी सोमवार को हुआ था। शहादत का संदेश देता हैं मुहर्रम

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