मौनी अमावस्या आत्म साधना के लिए है पवित्र दिन
हिंदू धर्म में पूजा पाठ को विशेष महत्व दिया गया हैं माघ के महीने को बहुत ही पवित्र महीना मना जाता हैं इस मास के हर दिन को स्नान दानादि के लिए पुण्यकारी माना गया हैं हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक इस माह के मध्यकाल में पड़ने वाली मौनी अमावस्या को आत्मसंयम की साधना के लिए बहुत ही खास माना जाता हैं हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन प्रजापति ब्रह्माजी ने मनु और शतरूपा को प्रकट करके इस पूरी सृष्टि की रचना का आरंभ किया था। इसी वजह से यह तिथि सृष्टि की रचना के शुभारंभ के रूप में जाना जाता हैं इस दिन मौन धारण करके स्नान, दान, तप और शुभ आचरण करने से व्रती को मुनिपद की प्राप्ति होती हैं।
वही धर्म शास्त्रों में कहा जाता हैं कि इस दिन सभी पवित्र नदियों का जल अमृत के समान हो जाता हैं इस दिन गंगा स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान फल की प्राप्ति होती हैं। मौनी अमावस्या के दिन मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के मुताबिक दान, पुण्य और जाप करने चाहिए।
वही पुराण ऐसा कहता हैं कि कांचीपुर में एक बहुत ही सुशील गुणवती नाम की कन्या थी। विवाह योग होने पर उसके पिता ने जब ज्योतिषी को उसकी कुंडली दिखाई तो उन्होंने कन्या कुंडली में वैधव्य दोष बताया। उपाय के मुताबिक गुणवती अपने भाई के साथ सिंहल द्वीप पर रहने सोमा धोबिन से आशीर्वाद लेने चल दी। वही दोनों भाई बहन एक पेड़ के नीचे बैठकर सागर के मध्य द्वीप पर पहुंचने की युक्ति ढूंढने लगे। पेड़ के ऊपर घौसले में गिद्ध के बच्चे रहते थे। शाम को जब गिद्ध परिवार घौंसले में लौटा तो बच्चों उने उनको दोनों भाई बहन के बारे में बताया। उनके वहां आने के कारण पूछकर उस गिद्ध ने दोनों को अपनी पीठ पर बिठाकर अगले दिन सिंहल द्वीप पहुंचा दिया। वहां पहुंचकर गुणवती ने सोमा की सेवा कर उसे प्रसन्न किया। सोम को गुणवती के वैधव्य दोष का पता लगा तो उसने अपना सिंदूर दान कर उसे अंखड सुहागिन होने का वरदान दिया। सोमा के पुण्यफलों से गुणवती का विवाह हो गया वह शुभ तिथि मौनी अमावस्या ही थी। निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता हैं यही मौनी अमावस्या का उद्देश्य हैं।