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राम मन्दिर के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर विवाद,याचिका में मस्जिद हटाने की गई मांग

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान विवाद मामले में सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया। श्रीकृष्ण जन्मभूमि से ईदगाह को हटाने के मामले में बुधवार को ही वादी पक्ष के विष्णु जैन,हरीशंकर जैन और रंजन अगिनहोत्री ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा था। मथुरा की सिविल कोर्ट ने
राम मन्दिर के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर विवाद,याचिका में मस्जिद हटाने की गई मांग

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान विवाद मामले में सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया। श्रीकृष्ण जन्मभूमि से ईदगाह को हटाने के मामले में बुधवार को ही वादी पक्ष के विष्णु जैन,हरीशंकर जैन और रंजन अगिनहोत्री ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा था।
मथुरा की सिविल कोर्ट ने श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका पर विचार करने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट के तहत सभी धर्मस्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली रखी जानी है इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामले को अपवाद रखा गया था।
बता दें कि 26 सितंबर को मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व और शाही ईदगाह को हटाने को मांग को लेकर सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में वाद दायर किया गया था। याचिका में जमीन को लेकर 1968 में हुए समझौते को गलत बताया गया था। हालांकि इस याचिका को लेकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान संस्थान ट्रस्ट का कहना है कि इस केस से उनका कोई लेना देना नहीं है।

श्रीकृष्ण विराजमान, स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि और उक्त लोगों की ओर से पेश किए दावे में कहा गया कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ (जो अब श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से जाना जाता है) और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था। इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी।

औरंगजेब ने करवाया था मस्जिद का निर्माण
साल 1618 में राजा वीर सिंह ने 33 लाख रुपए में कटरा केशव देव मंदिर का निर्माण करवाया था। साल 1670 में औरंगजेब ने मंदिर को आंशिक क्षतिग्रस्त किया और मस्जिद का निर्माण किया। इतिहासकार बताते हैं कि पांच अप्रैल 1770 को गोवर्धन में मराठा और मुगल के बीच जंग हुई, जिसमें मराठा जीत गए। मराठा ने दोबारा कटरा केशव देव मंदिर का जीर्णोद्धार किया और मस्जिद को हटा दिया। 1803 में अंग्रेजों ने अपने कब्जे में पूरा इलाका लिया। 1815 में इस 13.37 एकड़ जमीन को वाराणसी के राजा पटनीमल ने नीलामी में खरीद लिया। 21 फरवरी, 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बन गया। राजा पटनीमल के परिवार ने यह जमीन ट्रस्ट को दे दी। 12 अक्टूबर, 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंध समिति के बीच जमीन को लेकर उक्त कथित समझौता हुआ कि मस्जिद जितनी जमीन पर बनी है, उसे स्वीकार कर लिया गया।

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