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हर साल मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही क्यों

आज देशभर में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा हैं उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति कहा जाता हैं तो यही तमिलनाडु में पोंगल के नाम से जाना जाता हैं गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं असम में इसे माघी बिहू कहा जाता हैं और कर्नाटक में सुग्गी हब्बा, केरल में मकरविक्लु कहते हैं। तो कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत कहते हैं।
हर साल मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही क्यों

आज देशभर में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा हैं उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति कहा जाता हैं तो यही तमिलनाडु में पोंगल के नाम से जाना जाता हैं गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं असम में इसे माघी बिहू कहा जाता हैं और कर्नाटक में सुग्गी हब्बा, केरल में मकरविक्लु कहते हैं। हर साल मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही क्योंतो कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत कहते हैं यह पर्व भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता हैं। सभी लोग धार्मिक मान्यताओं से इस पर्व को अलग अलग तरीके से मनाते हैं इस त्योहार के पीछे एक खगोलीय घटना भी हैं। तो आज हम आपको उसके बारे में बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।हर साल मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही क्यों

आपको बता दें कि मकर का अर्थ है कौन्स्टोलेशन ऑफ कैप्रिकॉन जिसे मकर राशि कहा जाता हैं खगोल विज्ञान के कैप्रिकॉन और भारतीय ज्योतिष की मकर राशि में थोड़ा अंतर होता हैं। वही कॉन्सटोलेशन तारों से बनने वाले एक खास पैटर्न को कहते हैं जिन्हें पहचाना जा सके, प्राचीन काल से दुनिया की करीब हर सभ्यता में लोगों ने उनके आकार के आधार पर ही उन्हें नाम दिया हैं खगोलीय कॉन्सटोलेशन और ज्योतिष शास्त्र की राशियां मोटे तौर पर मिली जुली होती हैं मगर एक ही नहीं हैं। वही संक्रांति का अर्थ संक्रमण यानी ट्रांजिशन होता हैं।हर साल मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही क्यों इस दिन मोटे तौर पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता हैं यह विंटर सोलिस्टिस के बाद आता हैं बता दें कि सर्दियों की सबसे लंबी रात 22 दिसंबर के बाद आती हैं। वही सूर्य के किसी भी राशि में प्रवेश करने या निकलने का अर्थ यह नहीं होता हैं कि सूर्य घूम रहा हैं यह पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने की प्रक्रिया का हिस्सा होता हैं।हर साल मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही क्यों इसे परिभ्रमण कहा जाता हैं और धरती को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में एक वर्ष का वक्त लगता हैं। संक्रांति के बाद दिन लंबे और रात छोटी होती हैं। इसलिए 14 और 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता हैं।

आज देशभर में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा हैं उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति कहा जाता हैं तो यही तमिलनाडु में पोंगल के नाम से जाना जाता हैं गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं असम में इसे माघी बिहू कहा जाता हैं और कर्नाटक में सुग्गी हब्बा, केरल में मकरविक्लु कहते हैं। तो कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत कहते हैं। हर साल मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को ही क्यों

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