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आखिर किस कारण से भगवान शिव को धारण करना पड़ा अर्धनारीश्वर स्वरूप, जाने इसके पीछे की कथा को

जयपुर। भगवान शिव ने सृष्टि के सृजन से लेकर सृष्टि के विनाश तक कई सारे स्वरुप रखें, इनका हर एक स्वरूप अपने आप में एक विशिष्टता लिए हुए है व सभी को कुछ ना कुछ ज्ञान प्रदान करता है। आज हम इस लेख में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की बात कर रहे हैं, भगवान
आखिर किस कारण से भगवान शिव को धारण करना पड़ा अर्धनारीश्वर स्वरूप, जाने इसके पीछे की कथा को

जयपुर।  भगवान शिव ने सृष्टि के सृजन से लेकर सृष्टि के विनाश तक कई सारे स्वरुप रखें, इनका हर एक स्वरूप अपने आप में एक विशिष्टता लिए हुए है व सभी को कुछ ना कुछ ज्ञान प्रदान करता है। आज हम इस लेख में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की बात कर रहे हैं, भगवान शिव का यह स्वरुप अतिविशिष्ट हैं। आज हम इस लेख में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरुप के बारे में व इस स्वरुप को धारण करने के पीछे के कारण के बारे में बता रहे हैं।

आखिर किस कारण से भगवान शिव को धारण करना पड़ा अर्धनारीश्वर स्वरूप, जाने इसके पीछे की कथा को

अर्धनारीश्वर स्वरुप से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया तो मानव, जीव-जंतुओं की रचना कर दी लेकिन लेकिन सृष्टि का विकास फिर भी नहीं हो पा रहा था जि कारण से ब्रह्मा जी चिंतित हो गए और वे सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के पास गये। भगवान विष्णु से इस बारे में पूछा तो इन्होंने ब्रह्मा जी से भगवान शिव की स्तुति करने को कहा।

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ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उनकी इच्छा जानी तो ब्रह्माजी ने बताया कि वे सृष्टि के विकास को लेकर चिंतित हैं इसके बाद शिव ने अर्धनारिश्चर स्वरूप धारण कर ब्रह्माजी को समझाया कि सृष्टि के विकास के लिए नर और मादा दोनों का होना आवश्यक है।

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बगैर स्त्री के पुरूष की सृष्टि का विकास संभव नहीं है क्योंकि स्त्री पुरुष दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी एक से ही सृष्टि का विकास संभव नहीं हैं। इस प्रकार भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरूप धारण कर सृष्टि को स्त्री-पुरूष की समानता का संदेश दिया, व समझाया कि स्त्री और पुरूष दोनों मिल कर ही सृष्टि के चक्र को चलाते हैं। किसी एक से ऐसा संभव नही हैं।

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