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गुरु, आचार्य, पुरोहित, पंडित और पुजारी का फर्क जानिए

जयपुर। हम में से कई लोग पुजारी, पंडित, पुरोहित या आचार्य को एक ही समझते हैं। इन पांचों में कोई फर्क नहीं समझते हैं। लेकिन ऐसा सही नहीं है इन पांचों में फर्क हैं, आज हम इस लेख में गुरु,आचार्य,पुरोहित,पंडित और पुजारी के बीच के फर्क के बारे में बता रहें हैं। गुरु– गुरु जो
गुरु, आचार्य, पुरोहित, पंडित और पुजारी का फर्क जानिए

जयपुर। हम में से कई लोग पुजारी, पंडित, पुरोहित या आचार्य को एक ही समझते हैं। इन पांचों में कोई फर्क नहीं समझते हैं। लेकिन ऐसा सही नहीं है इन पांचों में फर्क हैं, आज हम इस लेख में गुरु,आचार्य,पुरोहित,पंडित और पुजारी के बीच के फर्क के बारे में बता रहें हैं।

गुरु, आचार्य, पुरोहित, पंडित और पुजारी का फर्क जानिए

गुरु– गुरु जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है उसे गुरु करते हैं। गुरु जीवन से अंधकार का नाश करता है। अध्यात्मशास्त्र या धार्मिक विषयों पर प्रवचन देने वाले व्यक्ति में और गुरु में बहुत अंतर होता है। गुरु हमें आत्म विकास और परमात्मा के बारे में बताता हैं। गुरु का अर्थ ब्रह्म ज्ञान का मार्गदर्शक।

गुरु, आचार्य, पुरोहित, पंडित और पुजारी का फर्क जानिए

आचार्य-  आचार्य उसे कहा जाता है जो वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता हो। आचार्य गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा देते हैं। आचार्य का अर्थ होता है जो आचार, नियम और सिद्धात का ज्ञाता हो और दूसरों को शिक्षा देता हो। वर्तमान समय में आचार्य किसी महाविद्यालय के प्रधान अधिकारी और अध्यापक को कहा जाता है।

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पुरोहित–  पुरोहित का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जो दूसरों के कल्याण की चिंता करता है। प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहा जाता था। इसके साथ ही यज्ञ कर्म करने वाले मुख्य व्यक्ति को भी पुरोहित माना जाता है। पुरोहित को सभी तरह के संस्कार कराने के लिए नियुक्त किया जाता है। प्रचीनकाल में किसी राज दरबार में पुरोहित की नियुक्त होती थी।

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पुजारी– पूजा और पाठ से संबंधित रखने वाले को पुजारी कहा जाता है। जो मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी कहलाता है।

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पंडित–  पंडित किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने वाले व्यक्ति को कहा जाता है। पंडित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दक्ष। प्राचीन समय में  वेद शास्त्रों के बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था।

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ब्राह्मण– ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है। ब्राह्मण वह होता है जो जो ब्रह्म यानि ईश्वर के अलावा किसी अन्य की पूजा नहीं करता । ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।

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