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जाने आस्था और धर्म में क्या फर्क हैं।

आस्था शब्द संस्कृत के स्था धातु से निष्पन्न हुआ हैं,जिसका अर्थ है,ठहरना और व्यवहार मे आस्था का अर्थ है, श्रद्धा,भरोसा या सहारा आदि होता हैं।जब किसी व्यक्ति को किसी पदार्थ सम्बन्ध अथवा मूल्य के प्रति अंत:करण में श्रद्धा –सम्मान का भाव ठहराव हो जाता हैं। तो ऎसे भाव को आस्था कहते हैं। आस्था और धर्म यह दोनो समाज के ऐसे आधार भूत पहलु हैं,जिनके सामन्जस्य से मनुष्य मानवता की ओर अग्रसर हो सकता है,माना जाता है कि मानवता ही मनुष्य जीवन का अभिष्ट हैं।
 जाने आस्था और धर्म में क्या फर्क हैं।

भारत देश में श्री राम और कृष्ण जैसे महापुरुषों ने जन्म लिया हैं। भारत देश को पवित्र का स्थान माना जाता हैं, लेकिन कुछ राजनैतिक कारणों से इसमें मत भेद खडा हो रहा हैं।और जिन घरो में नित्य इन महापुरुषो की  पूजा की जाती हैं। वह लोग भी राजनैतिक कारणों से आस्था को आघात पहुँचान् मे लगे हुए हैं। इस बात का इतिहास भी गवाह हैं कि जितने भी परकीय आक्रमणकारी भारत मे आये उन सभी ने समाज के परम्परागत विश्वासों धर्म, नैकित आर्दश,आदि को परिवर्तित करने और उसे नष्ट करने का प्रयास किया।

 जाने आस्था और धर्म में क्या फर्क हैं।

आस्था शब्द संस्कृत के स्था धातु से निष्पन्न हुआ हैं,जिसका अर्थ है,ठहरना और व्यवहार मे आस्था का अर्थ है, श्रद्धा,भरोसा या सहारा औदि होता हैं।जब किसी व्यक्ति को किसी पदार्थ सम्बन्ध अथवा मूल्य के प्रति अंत:करण में श्रद्धा –सम्मान का भाव ठहराव हो जाता हैं। तो ऎसे भाव को आस्था कहते हैं।

 जाने आस्था और धर्म में क्या फर्क हैं।

आस्था और धर्म यह दोनो समाज के ऎसे आधार भूत पहलु हैं,जिनके सामन्जस्य से मनुष्य मानवता की ओर अग्रसर हो सकता है,माना जाता है कि मानवता ही मनुष्य जीवन का अभीस्ट हैं। जिसकी उपलब्धि आस्तिक के बिना सम्भव नही हैं। आस्तिकता का जन्म आस्था से होता हैं।

 जाने आस्था और धर्म में क्या फर्क हैं।

और इसकी व्याप्ति सम्पूर्ण जगह है, लेकिन इसकी अनुभूति के लिये साधना रुप धर्म का अस्थितत्व लोक मे हैं। लेकिन मनुष्य लघुमार्ग पर चलकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने मे अपना भला समझता हैं। तात्कालिन सुख के आगे भविष्य के प्रति लापरवाह हो रहा हैं। अत: हमे भारत के प्राचीन ज्ञान और विज्ञान को पुन: प्रकाश में लाने के लिए धर्म का आस्था से विकाश करना पडेगा।

 जाने आस्था और धर्म में क्या फर्क हैं।

आस्था शब्द संस्कृत के स्था धातु से निष्पन्न हुआ हैं,जिसका अर्थ है,ठहरना और व्यवहार मे आस्था का अर्थ है, श्रद्धा,भरोसा या सहारा आदि होता हैं।जब किसी व्यक्ति को किसी पदार्थ सम्बन्ध अथवा मूल्य के प्रति अंत:करण में श्रद्धा –सम्मान का भाव ठहराव हो जाता हैं। तो ऎसे भाव को आस्था कहते हैं। आस्था और धर्म यह दोनो समाज के ऐसे आधार भूत पहलु हैं,जिनके सामन्जस्य से मनुष्य मानवता की ओर अग्रसर हो सकता है,माना जाता है कि मानवता ही मनुष्य जीवन का अभिष्ट हैं। जाने आस्था और धर्म में क्या फर्क हैं।

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