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Puja Path: शनिवार के दिन क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा, जानिए

हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिनों को देवी देवताओं की पूजा के लिए विशेष माना जाता हैं वही शनिवार को पीपल के पेड़ में जल अर्पित करने के साथ इसकी परिक्रमा करना शुभ माना जाता हैं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि की महादशा का प्रभाव
Puja Path: शनिवार के दिन क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा, जानिए

हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिनों को देवी देवताओं की पूजा के लिए विशेष माना जाता हैं वही शनिवार को पीपल के पेड़ में जल अर्पित करने के साथ इसकी परिक्रमा करना शुभ माना जाता हैं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि की महादशा का प्रभाव नहीं होता है साथ ही शनिदोष को दूर करने के लिए पीपल की पूजा विशेष कारागर साबित होती हैं पीपल के पेड़ की पूजा से शनि महाराज प्रसन्न हो जाते हैं इसके साथ ही आ​र्थिक परेशानियां भी दूर होती हैं तो आज हम आपको इससे जुड़ी जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।Puja Path: शनिवार के दिन क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा, जानिए

पौराणिक कथा के मुताबिक देवासुर संग्राम में असुरों के नायक वृत्तासुर के आगे देव असहाय से हो गए थे। देवों को ज्ञात हुआ कि अगर महर्षि दधीचि की अस्थियों का अस्त्र बनाकर असुरराज पर प्रहार करें तो उसका विनाश हो सकता हैं इस पर देवेंद्र स्वयं महर्षि दधीचि के सम्मुख देहदान करने की याचना लेकर गए। उस वक्त महर्षि दधीचि की उम्र केवल 31 वर्ष औरउनकी धर्मपत्नी की उम्र 27 वर्ष और गोद में नवजात बच्चे की उम्र मात्र 3 वर्ष थी। देवेंद्र की याचना और देवताओं पर आए संकट के निवारण हेतु महर्षि देह दान के लिए तैयार हो गए और अपने प्राण योगबल से त्याग दिया।Puja Path: शनिवार के दिन क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा, जानिए

देवताओं ने उनकी अस्थियां प्राप्त कर मांसपिंड को उनकी पत्नी को दाह हेतु दे दिया दाह संस्कार के समय महर्षि दधिचि की पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पाईं और पास में ही स्थित विशाल पीपल के पेड़ के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयं चिता में बैठकर सती हो गयी। इस तरह महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया मगर पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प रहा था।Puja Path: शनिवार के दिन क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा, जानिए

जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों को खाकर सुरक्षित रहा। एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजरे तो बालक को देखा और उसका परिचय देते हुए पूरी बात बताई। बालक ने पूछा कि उसके पिता की अकला मृत्यु का कारण क्या था तो नारद ने बताया कि उनपर शनिदेव की महादशा थी। छोटा सा बालक बोला, यानी उसके ऊपर आई विपत्ति का कारण शनिदेव की महादशा थी। नारद ने उस बालक का नाम पिप्लाद रखा और उसे दीक्षित किया। उस बालक ने ब्रह्मा जी की घोर तप्या की। ब्रह्मा जी ने बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति मांगी।Puja Path: शनिवार के दिन क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा, जानिए

वर मिलने के बाद पिप्पलाद ने सबसे पहले शनि का आह्वाहन किया और उनके सामने आते ही आंखें खोकर भस्म करना शुरू कर दिया। शनिदेव को इस प्रकार जलता देख ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए तो सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से विनय किया। ब्रह्मा जी स्वयं पिप्पलाद के सम्मुख गए और शनिदेव को छोड़ने की बात कहीं साथ ही दो और वर मांगने की बात कही। इस पर पिप्पलाद ने दो वरदान मांगे।Puja Path: शनिवार के दिन क्यों की जाती है पीपल के पेड़ की पूजा, जानिए

पहला जन्म से 5 साल तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा। जिससे कोई और बालक उसके जैसा अनाथ न हो। दूसरा मुझ अनाथ को शरण पीपल के पेड़ ने दी हैं जो व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएगा, उसपर शनि की महादशा का कोई प्रभाव नहीं होगा। ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया। तब से पीपल के पेड़ की पूजा की जाती हैं।

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