इस एक गलती की वजह से भगवान नहीं सुन पाते आपकी प्रार्थना
प्रार्थना का अर्थ यह नही होता हैं,कि सिर्फ बैठकर कुछ मंत्रो का उच्चारण किया जाए। इसके लिए आवश्यक है,कि आप निर्मल, शांत और ध्यान अवस्था में हो। इसलिए वैदिक पद्धति में प्रार्थना और भी शक्तिशाली हो जाती हैं। जब आप प्रार्थना करते हैं,तो उसमें आपको पूर्ण रूप से निमग्न होना होता हैं। अगर मन पहले से कही और भटक रहा हैं,तो फिर वहां प्रार्थना नहीं होती हैं। जब आपको कोई दुख होता हैं। तब आप अधिक एकाग्रचित्त हो जाते हैं। इसलिए दुख में लोग अधिक सुमिरन करते हैं। प्रार्थना आत्मा की पुकार होती हैं।
वही प्रार्थन तब होती हैं,जब आप कृतज्ञता महसूस कर रहे होते हैं, या फिर आप अत्यंत निस्सहाय या निर्बल महसूस कर रहे होते हैं। इन दोनो ही परिस्थितियों में आपकी प्रार्थना की पुकार सुनी जाएगी। जब आप निस्सहाय होते हैं,तो प्रार्थना अपने आप ही निकलती हैं। इसलिए कहते हैं, कि निर्बल के बल राम, अगर आप कमजोर हैं,तो ईश्वर आपके साथ हैं। प्रार्थना उस क्षण घटित होती हैं। जब आपको अपनी सीमित क्षमता का बोध होता हैं।
यह जरूरी नही हैं,कि आप किसकी प्रार्थना कर रहे हैं। प्रार्थना में प्रयोग करे जाने वाले शब्द प्रतीक और अनुष्ठान किसी धर्म विशेष के द्वारा दिए गए हो सकते हैं। लेकिन प्रार्थना उन सबसे परे होती हैं। वह भावनाओं के सूक्ष्म स्तर पर घटित होती हैं,और भावनाएं शब्द और धर्म के परे हैं। प्रार्थना के कृत्य ही में परिवर्तन लाने की शक्ति होती हैं। प्रार्थना सच्चे मन से करें और दिव्य शक्ति के साथ अपनी चालाकी दिखलाने का प्रयत्न नहीं करें। अधिकतर आप अपना बचा हुआ वक्त प्रार्थना को देते हैं।