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जानें मां वैष्णो और भैरव बाबा की लड़ाई की कहानी, क्यों होती है भैरों की पूजा

जयपुर। नवरात्री के नौ दिन तक देवी की पूजा की जाती है तो नवरात्रि में नवमी के दिन यानी नवरात्र के अंतिम दिन कन्या पूजन का विधान है इसके साथ ही कन्या पूजन में भैरव भी पूजा जाता है। नौ कन्या के साथ एक भैरव भी होता है। 9 कन्या के घर बुलाकर पूजा जाता
जानें मां वैष्णो और भैरव बाबा की लड़ाई की कहानी, क्यों होती है भैरों की पूजा

जयपुर।  नवरात्री के नौ दिन तक देवी की पूजा की जाती है तो नवरात्रि में नवमी के दिन यानी नवरात्र के अंतिम दिन कन्या पूजन का विधान है इसके साथ ही कन्या पूजन में भैरव भी पूजा जाता है। नौ कन्या के साथ एक भैरव भी होता है। 9 कन्या के घर बुलाकर पूजा जाता है उनको भेंट दी जाती है व भोजन कराया जाता है। आज इस लेख मे हम कन्या  पूजन में भैरों की पूजा कैसे शुरु हुई इस बारे मे बता रहें है।

जानें मां वैष्णो और भैरव बाबा की लड़ाई की कहानी, क्यों होती है भैरों की पूजा

कटरा के पास हन्साली गांव में माता के परम भक्त श्रीधर रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। जिसके कारण वे हमेशा दुखी रहते थे। एक दिन उन्हे नवरात्रि में उनको सपने में देवी आकर बोली की नवरात्रि में नौ कुंवारी कन्याओं को बुल कर पूजा करें। जब पंडित ने कन्या पूजन करने के लिए कन्या बैठाई तो उसमें मां वैष्णो देवी कन्या के रूप में बीच में आकर बैठ गई।  पूजा के बाद अन्य सभी कन्या तो चली गईं लेकिन माता वैष्णो देवी नहीं गईं। उन्होंने श्रीधर से कहा- “सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।”

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श्रीधर ने कन्या की बात मान कर आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश सब को दे दिया। गांव के लोग हैरान थे कि आखिर किस के कहने पर इसने सभी को भंडारे का निमत्रणं दिया। और गांव वाले भंडारे के लिए चलें गयेय़ श्रीधर ने सब को बैठाया और दिव्य कन्या ने सब को भोजन परोसना शुरु किया। लेकिन जब कन्या भैरवनाथ को भोजन परोसने गई तो वह बोले, “मुझे तो मांस व मदिरा चाहिए।”

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इस पर कन्या ने कहा “ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता”। लेकिन भैरवनाथ ने जिद पकड़ ली लेकिन माता उसकी चाल भांप गई। इस पर कन्या ने पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर चली गईं। तो भैरवनाथ  ने उनका पीछा किया।उस समय माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। रास्ते में एक गुफा में देवी ने नौ माह तक तप किया। कन्या की खोज में भैरव भी वहां तक पहुच गया। तब एक साधु ने उससे कहा, “जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं।’

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भैरव ने साधु की बात को माना नहीं लेकिन तब तक माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। उस गुफा को गर्भ जून के नाम से जाना जाता है। इसके बाद देवी ने भैरव को लौटने के लिए कहा किंतु वह नहीं माना।

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उसके बाद माता ने आगे की ओर प्रस्थान किया, तो भैरव नाथ ने उनका रास्ता रोक कर युद्ध के लिए ललकारा उस समय वीर लंगूर ने भैरव को रोकने की कोशिश की तो उसे भैरवनाथ ने निढाल कर दिया। उसी समय माता वैष्णो ने चंडी रूप धारण कर भैरव का वध कर दिया और उसका सिर धड़ से अलग कर फेंका तो वह ऊपर की घाटी में जा गिरा जिसे आज भी  भैरों घाटी नाम से जाना जाता है।

मरते समय भैरो ने मां से क्षमा मांगी, मां ने उसे माफ कर वरदान दिया और कहा जो व्यक्ति मेरे दर्शन के लिए आएगा अगर वह तेरे दर्शन नहीं करेगा तो उसकी यात्रा अधूरी मानी रहेगी।

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