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क्या आप भी हाई ब्लड प्रेशर को उम्र का तकाज़ा समझ रहे हैं, तो असली कारण समय पर जान लीजिए

हमारे शरीर में बहुत सी बीमारियां घर कर सकती हैं, और कई बीमारियां तो ऐसी होती हैं जिनके असली कारण तो हमें पता ही नहीं होते। आज हम बात कर रहे हैं ब्लड प्रेशर की। ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहे तो ही सेहत के लिए सही रहता है, वरना ब्लड प्रेशर लो होना और हाई होना,
क्या आप भी हाई ब्लड प्रेशर को उम्र का तकाज़ा समझ रहे हैं, तो असली कारण समय पर जान लीजिए

हमारे शरीर में बहुत सी बीमारियां घर कर सकती हैं, और कई बीमारियां तो ऐसी होती हैं जिनके असली कारण तो हमें पता ही नहीं होते। आज हम बात कर रहे हैं ब्लड प्रेशर की। ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहे तो ही सेहत के लिए सही रहता है, वरना ब्लड प्रेशर लो होना और हाई होना, दोनों ही हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं। ऐसी बामारियों के कई कारण हो सकते हैं और इनकी असली वजह समझ कर सही समय पर इनका इलाज करवाना बहुत जरूरी होता है।

हाई ब्लड प्रेशर :-
वहीं बात करें हाई ब्लड प्रेशर की, तो क्या आपको पता है कि इसके पीछे क्या कारण हैं? मोटापा, नमक की अधिक मात्रा, अधिक ड्रिंक या फिर हैरिडिटि को अक्सर इसका कारण माना जाता है। वहीं कुछ लोग इसे उम्र का तकाज़ा भी कहते हैं और कुछ लोग फिजिकल एक्टिविटी और किसी बीमारी को भी इसकी वजह मानते हैं। अगर इस बामारी का सही समय पर और सही इलाज नहीं करवाया गया तो यह हार्ट अटैक और स्ट्रोक का कारण भी बन सकता है।

हाइपरटेंशन का कारण :-
हाल ही में रीसर्चर्स ने इसके कारणों पर अध्ययन किया, और इस अध्ययन से हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में भी काफी सहायता मिलेगी। उच्च रक्तचाप को टेक्नीकल लैंग्वेज में हाइपरटेंशन कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि हाइपरटेंशन के मरीजों में एक खास हार्मोन पाया जाता है, जिसे एल्डोस्टेरोन कहा जाता है। एल्डोस्टेरोन हार्मोन के बहुत ज्यादा बनने के कारण ही शरीर में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या पैदा होती है।

क्या आप भी हाई ब्लड प्रेशर को उम्र का तकाज़ा समझ रहे हैं, तो असली कारण समय पर जान लीजिए
aldostarano syndrome

कॉनशिंग सिंड्रोम :-
इस कंडीशन को कॉन सिन्ड्रोम या एल्डोस्ट्रोनिज्म के नाम से जाना जात है। ब्रिटेन की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का कहना है कि बहुत से मरीज इस सिंड्रोंम से काफी हद तक ग्रसित हैं। उनका कहना है कि उनके शरीर में एल्डोस्टेरोन का ओवर प्रोडक्शन तो है ही, साथ ही इनका स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल भी काफी बढ़ा हुआ होता है। वैज्ञानिकों ने एल्डोस्टेरोन और कोर्टिसोल के ओवरप्रोडक्शन को कॉनशिंग सिंड्रोम नाम दिया है।

इलाज :-
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कॉप सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों की एडरनल ग्लैंड्स में बहुत ज्यदा कोर्टिसोल का प्रोडक्शन होता है। इसी वजह से ट्रीटमेंट का रिजल्ट पूरी तरह से नहीं आ पाता है। फिलहाल बहुत से कॉन सिंड्रोम मरीज का इलाज ऐसी ड्रग से किया जाता है जो एल्डोस्टेरोन के विपरीत इफेक्टिव होता है। हालांकि इसी के चलते ज्यादातर इसमें कोर्टिसोल की अधिकता का इलाज नहीं हो पाता है।

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