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जानिए कैसे मछली की ये प्रजाति जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो रही है?

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस और सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि कम से कम एक दक्षिण ध्रुव मछली, अंटार्कटिक ड्रैगनफिश के भ्रूर्ण के विकास को, पानी में कार्बन डाई ऑक्साइड में बढ़ोतरी और साथ ही समुद्र के तापमान में बढ़ोतरी से काफी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन का
जानिए कैसे मछली की ये प्रजाति जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो रही है?

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस और सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि कम से कम एक दक्षिण ध्रुव मछली, अंटार्कटिक ड्रैगनफिश के भ्रूर्ण के विकास को, पानी में कार्बन डाई ऑक्साइड में बढ़ोतरी और साथ ही समुद्र के तापमान में बढ़ोतरी से काफी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन का Gymnodraco acuticeps के अस्तित्व और विकास पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा इस मछली के भ्रूण संबंधी विकास में कई प्रजातियों (10 महीनों तक) की तुलना में अधिक समय लगता है, एक रिपोर्ट के अनुसार बताया जा रहा है कि परिस्थितियों में बदलाव के लिए यह विशेष रूप से कमजोर है।

टीम के शोधकर्ताओं ने ड्रैगन फिश भ्रूण के अस्तित्व और मेटाबोलिजम को दो अलग-अलग तापमानों और कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा तीन वर्षों के दौरान मछली के धमनी रक्त (पीओओ 2) पर लगाए गए दबाव के तीन स्तरों में मापा।

उन्होंने सीखा है कि लागू किए गए बदलाव ने मछली के शरीर विज्ञान और विकास में काफी बदलाव किया है। तापमान किसी भी चीज में बदलाव का प्रमुख कारक होता है। लेकिन pCO2 के बढ़ने से भ्रूण के शरीर विज्ञान में भी बदलाव आएगा।

उन्होंने सीखा है कि ड्रैगन फिश भ्रूण के मरने की संभावना अधिक होती है, जब तीन सप्ताह के प्रयोग के दौरान उच्च तापमान को बढ़ाकर पीओओ 2 जोड़ा जाता है। इससे पता चलता है मछली के विकास पर किसी एक कारक का असर नहीं पड़ता है। क्योंकि बढ़ी हुई pCO2 का प्रभाव बढ़े हुए तापमान में ज्यादा होता है। जिन पर इसका असर होता है उनका भ्रूर्ण भी दूसरी मछलियों से अलग होता है।

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