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200 साल में केवल एक बार इस मंदिर के भीतर उगते हैं सूर्य देव

जयपुर। भारत में कई ऐसे मंदिर है जहां होने वाले चमत्कार के बारे मे जानकर हैरानी होती है। ऐसा ही एक सूर्य मंदिर जो उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में स्थित है। इस मंदिर को वहां की स्थानिय भाषा में बिरंचि-नारायण कहा जाता है। सूर्य मंदिर के कारण इस क्षेत्र को अर्क-क्षेत्र या पद्म-क्षेत्र कहा
200 साल में केवल एक बार इस मंदिर के भीतर उगते हैं सूर्य देव

जयपुर। भारत में कई ऐसे मंदिर है जहां होने वाले चमत्कार के बारे मे जानकर हैरानी होती है। ऐसा ही एक सूर्य मंदिर जो उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में स्थित है। इस मंदिर को वहां की स्थानिय भाषा में  बिरंचि-नारायण कहा जाता है। सूर्य मंदिर के कारण इस क्षेत्र को अर्क-क्षेत्र या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। सूर्य मंदिर के लिए पुराणों में कहा गया है कि यह मंदिर श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने अपने श्राप से मुक्त होने पर बनाया था।

200 साल में केवल एक बार इस मंदिर के भीतर उगते हैं सूर्य देव

श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कोढ़ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी और सागर के संगम पर बारह वर्षों तक सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की साम्ब की तपस्या से प्रसन्न हो कर सूर्य में उनको रोग से मुक्ति दिलाई।

200 साल में केवल एक बार इस मंदिर के भीतर उगते हैं सूर्य देव

कोणार्क का सूर् मंदिर अपनी सुंदरता व वास्तु कला के लिए प्रसिद्द है। सूर्य मंदिर में कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदा के कारण मंदिर को क्षति होने लगी थी जिसके चलते 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडबर्न ने मंदिर की जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और मंदिर को पूरी तरह से रेत से भर दी जिससे मंदिर को क्षति से बचाया जा सके। इस काम को करने में तीन साल लगे और 1903 में यह मंदिर पूरी तरह पैक हो गया।

200 साल में केवल एक बार इस मंदिर के भीतर उगते हैं सूर्य देव

सूर्य मंदिर के बारे में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है, कोणार्क, जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य से श्रेष्ठ है। भारत के पास ये विश्व की धरोहर है। इस मंदिर को तीन मंडपों में बंटा गया है, मंदिर का मुख्य मंडप और नाट्यशाला अब ध्वस्त हो चुके हैं वर्तमान में मंदिर का ढांचा ही शेष रह गया है। मंदिर के बीच का हिस्सा जिसे जगमोहन मंडप या सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है,  इस हिस्से  में चारों ओर से दीवारें उठवाकर रेत भर दी गई थी।  सूर्य मंदिर के लिए माना जाता है कि 200 साल में केवल एक बार इस मंदिर में ऐसा संयोग होता है जब इस मंदिर में सूर्य मंदिर के अंदर से उग रहा हो।

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