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कभी पहनने को जूते भी नहीं थे आज बन गई भारत की ‘उड़नपरी’

जयपुर( स्पोर्ट्स डेस्क) भारतीय महिला ऐथलीट हिमा दास ने विभिन्न दौड़ स्पर्धाओं में लगातार 5 गोल्ड मेडल जीतकर धूम मचाई हुई है। हिमा दास पर उनके शानदार प्रदर्शन के लिए पूरा देश नाज़ कर रहा है।वैसे यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हिमा दास को यहां तक पहुंचने में कड़ा संघर्ष करना पड़ा।
कभी पहनने को जूते  भी नहीं थे आज बन गई भारत की ‘उड़नपरी’

जयपुर( स्पोर्ट्स डेस्क) भारतीय महिला ऐथलीट हिमा दास ने विभिन्न दौड़ स्पर्धाओं में लगातार 5 गोल्ड मेडल जीतकर धूम मचाई हुई है। हिमा दास पर उनके शानदार प्रदर्शन के लिए पूरा देश नाज़ कर रहा है।वैसे यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हिमा दास को यहां तक पहुंचने में कड़ा संघर्ष करना पड़ा।

कभी पहनने को जूते  भी नहीं थे आज बन गई भारत की ‘उड़नपरी’ बताया जाता हैकि एक समय था तब हिमा दास के पास पहनने को जूते भी नहीं थे । असम के नौगांव जिले के गांव ढिंग  में रहने वाली हिमा दास ने मेहनत के दम पर आज यह मुकाम हासिल किया है जो किसी के लिए भी एक मिशाल है। हिमा दास ने खुद बताया था कि उन्हें कभी अभ्यास के लिए मैदान तक नहीं मिलते थे। कभी पहनने को जूते  भी नहीं थे आज बन गई भारत की ‘उड़नपरी’ वह पानी और कीचड़ों से भरे गढ्ढों वाले मैदानों पर दौड़ कर अभ्यास किया करती थीं। हिमा दास के पास पहने की जूते भी नहीं थे परिवार में 6 बच्चों में सबसे छोटी हिमा पहले लड़कों के साथ पिता के धान के खेतों में फुटबॉल खेलती थीं। हिमा बताती  हैंकि उनके पिता रंजीत दास के पास महज दो बीघा जमीन है जबकि मां जुनाली घरेलू महिला हैं। कभी पहनने को जूते  भी नहीं थे आज बन गई भारत की ‘उड़नपरी’ जमीन का छोटा सा टुकडा़ ही परिवार के छह सदस्यों की रोजी रोटी का जरिया रहा । हिमा दास की इस संघर्ष भरी कहानी को जानकर हर किसी के आंख में आंसू आ सकते हैं। हिमा दास आज जिस छोटी उम्र में कामयाबी शिखर चूम रही हैं तो इसमें उनकी मेहनत ही निहित है।इसके साथ ही हिमा दास  देश के उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो किसी कारण वश आगे नहीं बढ़ पाती हैं।कभी पहनने को जूते  भी नहीं थे आज बन गई भारत की ‘उड़नपरी’

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