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आमलकी एकादशी व्रत कथा व रात्रि जागरण के महत्व के बारे में जानें

जयपुर। आमलकी एकादशी के दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है, इस साल 17 मार्च यानी रविवार के दिन आमलकी एकादशी का पर्व मनाया जाएंगा। आमलकी एकादशी का व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है। इस दिन आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा व आराधना की जाती
आमलकी एकादशी व्रत कथा व रात्रि जागरण के महत्व के बारे में जानें

जयपुर।  आमलकी एकादशी के दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है, इस साल 17 मार्च यानी रविवार के दिन आमलकी एकादशी का पर्व मनाया जाएंगा। आमलकी एकादशी का व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है। इस दिन आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा व आराधना की जाती है। शास्त्रों में इस व्रत की अत्यधिक महिमा है, इस व्रत को करने से लोगो की सारी मनोकामना पूरी होती है, व पापों का नाश होता है।

आज हम इस लेख में आमलकी एकादशी के व्रत से संबधित कथा के बारे में बता रहे हैं, इस कथा को इस दिन पढने से व्रत का पुण्य मिलता है। शास्त्रों में माना जाता है कि आमलकी एकादशी पर आवलें के पेड की पूजा करने के बाद वहीं पर बैठ कर कथा पड़नी चाहिए।

आमलकी एकादशी व्रत कथा व रात्रि जागरण के महत्व के बारे में जानें

आमलकी एकादशी व्रत कथा

वैदेशिक नगर में चैत्ररथ नाम का चंद्रवंशी राजा रहता था, जो धर्म-कर्म में विश्वास रखता था व प्रजा की सेवा में लगा रहता था। उसके राज्य में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी आनंदमय जीवन व्यत्तित कर रहें थे। राजा व राजा की पूरी प्रजा भगवान विष्णु की भक्ति करते थे और एकादशी का व्रत भी रखते थे। जब फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई, तो राजा और उनकी प्रजा ने व्रत रखा।

आमलकी एकादशी व्रत कथा व रात्रि जागरण के महत्व के बारे में जानें

व्रत के दिन राजा चैत्ररथ ने मंदिर में पूर्ण कुंभ स्थापित करके प्रजा के साथ आंवले के पेड़ की विधिवत पूजा की व राजा ने प्रार्थना कर कहा हे धात्री! तुम ब्रह्मस्वरूप हो, समस्त पापों का नाश करने वाले हो, तुमको नमस्कार है। हमारा अर्घ्य स्वीकार करो। तुम श्रीराम चन्द्रजी द्वारा सम्मानित हो, मैं आपकी प्रार्थना करता हूं, अत: हमारे सभी पापों का नाश करें। इसके बाद रात्रि में राजा और प्रजा ने मिल कर जागरण किया।

आमलकी एकादशी व्रत कथा व रात्रि जागरण के महत्व के बारे में जानें

रात्रि जागरण के दौरान वहां एक बहेलिया आया, जो पापी और दुराचारी था व अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए जीव हत्या करता था। वह बहेलिया भूखा और प्यासा मंदिर एक कोने में बैठ कर भगवान विष्णु व आमलकी एकादशी की महत्ता को सुनने लगा। इसके बाद सुबह जब सभी अपने घर चले गए तो बहेलिया भी अपने घर चला गया।

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कुछ समय बीतने के बाद ब​हेलिया की मृत्यु हो गई। इसके बाद बहेलिया का अगला जन्म राजा विदूरथ के घर हुआ, उनका नाम वसुरथ रखा गया। वसुरथ सूर्य के समान तेज, चंद्रमा के समान कांति व  पृथ्वी के समान क्षमाशीलता और भगवान विष्णु जैसी वीरता था। राजा के पास चतुरंगिनी सेना थी व राजा 10 हजार गांवों का पालन करता था। राजा के दरवाजे से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। यह सब आमलकी एकादशी के व्रत कथा के प्रभाव से हुआ था।

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