Samachar Nama
×

पांडवों के सगे मामा शल्य जब दुर्योधन की ओर से लड़े तो की एक चालाकी

जयपुर। महाभारत के युद्ध में कई सारे ऐसी बातों हुई जिन में से कई सारी घटना के बारे में हम नहीं जानते हैं। आज हम इस लेख में महाभारत के युद्ध में घटित घटना के बारे में बता रहे हैं। आज हम पांडवों के मामा शल्य के बारे में बता रहें हैं। लेकिन कौरव भी शल्य
पांडवों के सगे मामा शल्य जब दुर्योधन की ओर से लड़े तो की एक चालाकी

जयपुर। महाभारत के युद्ध में कई सारे ऐसी बातों हुई जिन में से कई सारी घटना के बारे में हम नहीं जानते हैं। आज हम इस लेख में महाभारत के युद्ध में घटित घटना के बारे में बता रहे हैं। आज हम पांडवों के मामा शल्य के बारे में बता रहें हैं।

पांडवों के सगे मामा शल्य जब दुर्योधन की ओर से लड़े तो की एक चालाकी

लेकिन कौरव  भी शल्य को मामा मानकर पूरा आदर और सम्मान देते थे। राजा शल्य माद्री के भाई व  नकुल  और  सहदेव के सगे मामा थे जिनके पास विशाल सेना थी। जिस समय युद्ध की घोषणा हुई तो शल्य अपनी सेना लेकर युद्ध भूमि की ओर प्रस्थान किया। वहीं दूसरी ओर नकुल और सहदेव को सत प्रतिशत विश्वास था कि मामा शल्य उनकी ओर से ही लड़ाई लड़ेंगे। जब शल्य युद्ध के लिए अपनी सेना के साथ आ रहें थे उस समय रास्ते में जहां भी उन्होंने और उनकी सेना ने पड़ाव डाला वहां पर उनके रहने, पीने और खाने की उचित व्यवस्‍था मिली। यह व्यवस्था देखकर वे प्रसन्न हुए। वे मन ही मन युद्धिष्‍ठिर को धन्यवाद देने लगे।

पांडवों के सगे मामा शल्य जब दुर्योधन की ओर से लड़े तो की एक चालाकी

इसके साथ ही उनके हस्तिनापुर के पास पहुंचने पर उन्होंने कई सारे विश्राम स्थल और सेना के लिए भोजन की उत्तम व्यवस्था देखी। यह देखकर शल्य ने पूछा, ‘युधिष्ठिर के किन कर्मचारियों ने यह उत्तम व्यवस्था की है। उनको सामने लाओं मैं उन्हें पुरस्कार देना चाहता हूं।’  यह सुनकर छुपा हुआ दुर्योधन सामने प्रकट हुआ और हाथ जोड़कर कहने लगा,  मामाश्री यह सभी व्यवस्था मैंने आपके लिए ही की है, ताकि आपको किसी भी प्रकार का कष्ट न हो।’

पांडवों के सगे मामा शल्य जब दुर्योधन की ओर से लड़े तो की एक चालाकी

यह सुनकर शल्य के मन में दुर्योधन के लिए प्रेम उमड़ आया और भावना में बहकर कहा, ‘मांगों आज तुम मुझसे कुछ भी मांग सकते तो। मैं तुम्हारी इस सेवा से अतिप्रसन्न हुआ हूं।’  यह सुनकर दुर्योधन के कहा, ‘आप सेना के साथ युद्ध में मेरा साथ दें और मेरी सेना का संचालन करें।’

पांडवों के सगे मामा शल्य जब दुर्योधन की ओर से लड़े तो की एक चालाकी

दुर्योधन की यह बात सुनकर शल्य सोच में पड़ गये लेकिन वे वचन से बंधे हुए थे जिस कारण से उनको दुर्योधन का स्वीकार करना पड़ा। लेकिन राजा शल्य ने इसके साथ ही शर्त भी रखी की युद्ध में पूरा साथ दूंगा, जो बोलोगे वह करूंगा, परन्तु मेरी जुबान पर मेरा ही अधिकार होगा।

Share this story