रहस्य से भरा है नागा साधुओं का जीवन, आखिर कहां से आते हैं नागा साधु
जयपुर। दिसंबर-जनवरी माह में प्रयागराज में कुंभ लगने वाला है जिसके लिए इस समय तैयारी जोरों पर है। कुंभ के समय प्रयाग में गंगा स्नान के लिए करोड़ों श्रद्धालु आएंगे। लेकिन हमेशा की ही तरह कुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण अखाड़ों में आएं साधु-संत होते हैं। जो देश के अलग अलग हिस्सों से अपनी टोली के साथ पहुंचते हैं।
कुंभ में आने वाले साधुओं के अखाडें में सबसे प्रमुख अखाड़ा निर्वाणी अनी अखाड़ा माना जाता है। यह अखाड़ा बैरागी वैष्णव से जुड़ा है। यह अखाड़ा हनुमान गढ़ी और अयोध्या में स्थित है। निर्वाणी अनी अखाड़े में साधुओं के लिए नियम बनाए गये है जहां इनको कसरत कर अफने शरीर को सुदृढ़ बनाना होता है इसके साथ ही हथियार चलाना भी सिखाया जाता है। इसके साथ ही यहां पर मल्लयुद्ध विद्या और तलवारबाजी भी सीखाई जाती है। अखाडों के नियम-कानून सख्त होते हैं। यहां पर सुबह उठ कर स्नान, पूजा पाठ किया जाता है। नागा साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
सनातन संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए मठ अखाड़ा बने हैं। अलग-अलग संप्रदायों से जुड़े अखाड़ों में नियम-कानून और परम्पराएं भी अलग अलग हैं। अखाड़े में शामिल साधुओं को नागा की उपाधि दी जाती है। नागा का अर्थ होता है जो अपनी बात पर अडिग रहे।
भारत में मेन 13 अखाड़े हैं। जो तीन मतों में बंटे हैं। इनमें शैव सन्यासी संप्रदाय, वैरागी और उदासीन संप्रदाय आता है। शैव सन्यासी संप्रदाय इनके पास सात अखाड़े हैं। वैरागी संप्रदाय के पास तीन अखाड़े हैं। तीसरा उदासीन संप्रदाय इसके भी तीन प्रमुख अखाड़े हैं।