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यूपी के सीएम और महंत योगी आदित्यनाथ के गोरक्षपीठ का इतिहास

गोरखपुर। नाथ संप्रदाय का मुख्य उद्देश्य सामाजिक समरसता है जिसके लिए यह पंथ समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, छुआछूत और कुरीतियों के खिलाफ अपनी अलख जगाता रहा है। नाथ संप्रदाय के लिए हिंदू-मुसलमान में कोई भेद नहीं है। आज हम गोरखपुर स्थित जिस गोरक्षपीठ की चर्चा कर रहे हैं उसी नाथ संप्रदाय के पीठाधीश्वर है यूपी
यूपी के सीएम और महंत योगी आदित्यनाथ के गोरक्षपीठ का इतिहास

गोरखपुर। नाथ संप्रदाय का मुख्य उद्देश्य सामाजिक समरसता है जिसके लिए यह पंथ समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, छुआछूत और कुरीतियों के खिलाफ अपनी अलख जगाता रहा है। नाथ संप्रदाय के लिए हिंदू-मुसलमान में कोई भेद नहीं है। आज हम गोरखपुर स्थित जिस गोरक्षपीठ की चर्चा कर रहे हैं उसी नाथ संप्रदाय के पीठाधीश्वर है यूपी के नए सीएम योगी आदित्यनाथ। गोरक्षपीठ के चिंतन के केंद्र में शुरू से ही सबका साथ सबका विकास रहा है। यूपी के पूर्वांचल में ही नहीं बल्कि पूरे देश में सामाजिक समरसमा को बढ़ावा देने में नाथ संप्रदाय ओर गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ की बड़ी भूमिका रही है।  नाथ संप्रदाय के मठ और मंदिर देश के कई राज्यों में ही नही बल्कि पकिस्तान नेपाल व अफगानिस्तान आदि देशों में भी हैं। गोरखपुर का मठ सबसे बड़ा है।

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भगवान महाकाल हैं नाथ संप्रदाय के संस्थापक-

ऐसी मान्यता  है कि मत्स्येन्द्रनाथ ने भगवान शिव ने ज्ञान प्राप्त किया था जिनके शिष्य गोरखनाथ ने एक नए मार्ग नाथसंप्रदाय की स्थापना की। इस संप्रदाय के साधक अपने नाम के आगे नाथ शब्द जोड़ते हैं। कान छिदवाने के कारण उन्हें कनफटा, दर्शन कुंडल धारण करने के कारण दरशनी और गोरखनाथ के अनुयायी होने के कारण गोरखनाथी भी कहा जाता है। गोरक्षपीठ की तीन पीढिय़ों में  महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवैद्यनाथ के साथ महंत आदित्यनाथ के नाम में भी यह विशेषता दिखती है। आपको बतादें कि नाथसंप्रदाय ने हमेशा  ब्राह्मणवाद, अतिभोगवाद  के कारण आई सामाजिक विकृतियों के खिलाफ समाज को जागरूक किया। शायद यही कारण है कि ऊंच.नीच भेदभाव और  आडंबरों के पुरजोर विरोध के कारण बड़ी संख्या में हिंदू और मुसलमान दोनो धर्मां के लोग नाथ संप्रदाय के अनुयायी बने।

ब्रिटिश इतिहासकार जार्ज ब्रिग्स की किताब-

1914 में ब्रिटिश इतिहासकार जार्ज ब्रिग्स ने अपनी किताब गोरखनाथ एंड कनफटा योगीज में लिखा है कि इस मंदिर का निर्माण 1800 के आसपास हुआ था। आज भी यह पीठ अपनी परंपरा का निर्वाह करती है। सबदी गोरखनाथ की सबसे प्रमाणिक रचना है।

मंदिर में वर्षों से रहते हैं कई मुस्लिम परिवार-

मंदिर परिसर सांप्रदायिक सद्भावना का केन्द्र है। आमतौर पर लोग गोरखनाथ मंदिर को केवल हिदुंत्व के केंन्द्र के रूप में देखते हैं लेकिन इस परिसर में आज भी कई पीढ़ीयों से मुसलिम परिवार रहते हैं। देखने पर ऐसा लगता है जैसे मंदिर परिसर के चारो ओर अल्पसंख्यक समुदाय की बस्ती है। जो लोग गोरक्षपीठ को अपने ढंग से समझने की कोशिश करते हैं उन्हें सामाजिक समरसता के प्रति योगदान को जरूर देखना चाहिए।

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